आप सभी ने सुना होगा कि ऊंट अपने अंदर कई लीटर पानी जमा कर लेता है, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि एक पेड़ अपनी सूंड में लाखों लीटर पानी जमा कर सकता है? नहीं! लेकिन यह भी सच है। दुनिया में एक ऐसा पेड़ है जो अपने तने में 1.2 लाख लीटर पानी जमा कर सकता है।

इस पेड़ का नाम बाओबाब है और इसे हिंदी में ‘गोरक्षी’ कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम एडंसोनिया डिजिटाटा है। लोग इसे ‘बॉब’, ‘बोबोआ’, ‘बॉटल ट्री’ और ‘इनवर्टेड ट्री’ भी कहते हैं। अरबी में इसे ‘बू-हिबाब’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘कई बीजों वाला पेड़’। अफ्रीका ने इसे ‘द वर्ल्ड ट्री’ भी करार दिया है।

इस अनोखे पेड़ को देखकर ऐसा लगता है कि इसकी जड़े ऊपर और तना नीचे है। बाओबाब के पास साल में केवल 6 महीने ही पत्ते होते हैं। इनके फूल लाल, पीले और सफेद रंग के होते हैं, इनकी 5 पंखुड़ियाँ होती हैं।

इनमें से कुछ प्रजातियों के फूल नींबू या चमगादड़ द्वारा परागित होते हैं, जबकि बाकी इस उद्देश्य के लिए बाज नामक कीट पर निर्भर होते हैं। जानकारों का कहना है कि बाओबाब ट्री (Adansonia digitata) की सूंड में 1,17348 लीटर पानी स्टोर करने की क्षमता होती है।

इन पेड़ों को ‘जीवन देने वाले पेड़’ भी कहा जाता है। इनकी प्रजाति अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। उनके पानी के खंभे 9 मीटर (30 फीट) व्यास और 18 मीटर (59 फीट) ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं।

अफ्रीकी देश मेडागास्कर में स्थित कुछ ‘बाओबाब पेड़’ सदियों पुराने हैं। एफेट्टी शहर के पास भी ऐसा ही एक पेड़ है। इस पेड़ का नाम ‘टी-पॉट बाओबाब’ है। यह पेड़ 1200 साल पुराना है।

बाओबाब पेड़ मेडागास्कर, 2 अन्य अफ्रीकी देशों और 1 ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले 9 पर्णपाती प्रजातियों के हिबिस्कस या मैलो परिवार की एक प्रजाति है। मेडागास्कर में पाई जाने वाली 6 प्रजातियों के तने का रंग ग्रे-ब्राउन से लेकर लाल तक होता है। इनके तने ऊपर से नीचे तक या बटन या बेलनाकार शंकु के आकार के होते हैं।

बाओबाब का पेड़ बहुत उपयोगी होता है
बाओबाब पेड़ों की सभी प्रजातियों का उपयोग अफ्रीका के मूल निवासी करते हैं। इन पेड़ों की पत्तियाँ खाने योग्य होती हैं। उनके बड़े गले जैसे फल के गूदे से एक ताज़ा पेय बनाया जाता है। इनका उपयोग दवा में भी किया जाता है। उनकी छाल से प्राप्त रेशे से रस्सियाँ और कपड़े बनाए जाते हैं। कई क्षेत्रों में इन पेड़ों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है।

पिछले 2 दशकों से इन पेड़ों पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 2005 के बाद से, अफ्रीका के 13 सबसे पुराने पेड़ों में से 9 और 6 सबसे बड़े पेड़ों में से 5 नष्ट हो चुके हैं।

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