भागलपुर जिले के सुलतानगंज स्थित रेफरल अस्पताल परिसर में आशा फैसिलेटर की ओर से पांच दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया गया। यह हड़ताल उनके चार सूत्रीय मांगों को लेकर की गई, जिसके तहत सैकड़ों आशा फैसिलेटर महिला कर्मियों ने धरना-प्रदर्शन कर सरकार के प्रति आक्रोश जाहिर किया। प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने हाथों में बैनर, पोस्टर लेकर नारेबाजी की और अपनी मांगों को लेकर सरकार से त्वरित कार्रवाई की अपील की।
धरने की अगुवाई कर रही आशा फैसिलेटर सदस्य रीना कुमारी ने बताया कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों की अनदेखी के कारण आशा फैसिलेटर की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। उन्होंने कहा कि बीते छह महीनों से उन्हें वेतन नहीं मिला है, जिससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इसके अलावा राज्य सरकार ने वादा किया था कि फैसिलेटर्स के वेतन में 1500 रुपये की वृद्धि की जाएगी, लेकिन वह भी अब तक लागू नहीं हुआ है।
रीना कुमारी ने आगे बताया कि आशा फैसिलेटर्स स्वास्थ्य सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गांव-गांव जाकर गर्भवती महिलाओं की देखभाल, टीकाकरण, बच्चों की स्वास्थ्य निगरानी से लेकर कोविड काल तक फ्रंटलाइन वर्कर्स की तरह काम करने के बावजूद उन्हें उचित वेतन और सम्मान नहीं मिल रहा है।
प्रदर्शन के दौरान चार प्रमुख मांगें रखी गईं। पहली मांग थी – छह माह का लंबित वेतन तुरंत भुगतान किया जाए। दूसरी – सरकार द्वारा घोषित 1500 रुपये की वेतन वृद्धि को तुरंत लागू किया जाए। तीसरी – आशा फैसिलेटर्स को 21 हजार रुपये प्रति माह वेतन दिया जाए, और सेवानिवृत्ति की आयु सीमा को बढ़ाकर 65 वर्ष किया जाए। साथ ही, सेवानिवृत्ति पर 10 लाख रुपये की धनराशि एकमुश्त प्रदान की जाए। चौथी और अंतिम मांग थी कि केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि में भी वृद्धि की जाए।
धरने में मौजूद आशा फैसिलेटर माया कुमारी, सुनैना देवी, पुनम कुमारी, कामनी देवी, सुनीता भारती, अनिता कुमारी, कंचन देवी, नूतन देवी सहित अन्य सदस्यों ने कहा कि जब तक सरकार हमारी मांगों पर सकारात्मक निर्णय नहीं लेती, तब तक हम लोग हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। सभी ने एकजुट होकर यह भी कहा कि यदि जल्द ही समाधान नहीं निकाला गया, तो आंदोलन को जिला स्तर से राज्य स्तर तक ले जाया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे स्वास्थ्य सेवा के जमीनी स्तर पर कार्य करती हैं, लेकिन उनके साथ व्यवहार संवेदनशील नहीं होता। न तो नियमित वेतन दिया जाता है, न ही स्वास्थ्य बीमा या सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएं मिलती हैं।
आशा फैसिलेटर माया कुमारी ने कहा, “हम सुबह से देर शाम तक लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लाना, बच्चों का टीकाकरण कराना, कोविड जांच कराना, हर घर दस्तक देना – ये सब कार्य हम करते हैं। फिर भी हमारी मेहनत का सही मोल नहीं मिलता।”
सुनैना देवी ने सरकार से आग्रह किया कि जब आंगनवाड़ी सेविका, सहायिका, आशा कार्यकर्ता को बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं, तो फैसिलेटर को क्यों नहीं? उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अब भी सरकार ने हमारी मांगों की अनदेखी की, तो आने वाले समय में बड़े आंदोलन की तैयारी की जाएगी।
प्रदर्शन स्थल पर पुलिस प्रशासन की ओर से शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए बल तैनात किए गए थे। अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों से वार्ता कर आंदोलन समाप्त करने की अपील की, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट कहा कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, आंदोलन जारी रहेगा।
आशा फैसिलेटर्स की यह हड़ताल स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर डाल रही है। गांवों में टीकाकरण, स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, मातृ एवं शिशु देखभाल जैसे कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में सरकार पर दबाव है कि वह जल्द ही कोई ठोस कदम उठाए।
गौरतलब है कि बिहार में हजारों आशा फैसिलेटर कार्यरत हैं, जो राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ मानी जाती हैं। लेकिन लंबे समय से ये महिलाएं वेतन और सुविधाओं की अनदेखी से परेशान हैं। बार-बार धरना प्रदर्शन के बावजूद जब समस्याओं का समाधान नहीं होता, तो उनमें असंतोष बढ़ना स्वाभाविक है।
अंततः प्रदर्शनकारी सदस्यों ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों से अपील की कि जल्द से जल्द उनकी मांगों पर अमल कर उन्हें न्याय दिया जाए। यदि उनकी मांगों को अनदेखा किया गया, तो वे संघर्ष की राह पर चलने के लिए बाध्य होंगी। आशा फैसिलेटर्स ने यह भी कहा कि वेतन और सम्मान दोनों जरूरी हैं, और इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
यह हड़ताल जहां सरकार के लिए चेतावनी है, वहीं यह आम लोगों को भी यह समझाने का प्रयास है कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को उनका हक मिलना चाहिए। स्वास्थ्य व्यवस्था तभी मजबूत होगी, जब उसे मजबूत बनाने वाले कर्मियों की सुध ली जाएगी।
