भागलपुर, बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। राजधानी पटना के बाद अब भागलपुर में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीर पर कालिख पोतने की घटना सामने आई है। यह घटना भागलपुर के औद्योगिक थाना क्षेत्र की है, जो थाने से महज सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। मुख्यमंत्री की यह तस्वीर फ्लाईओवर की दीवार पर लगी थी, जिसमें उनके साथ सरकार की योजनाओं और विकास कार्यों को दिखाने वाले स्लोगन भी लगाए गए थे। सुबह जब लोग अपने घरों से बाहर निकले तो देखा कि तस्वीर को काले रंग से बिगाड़ दिया गया है। इस हरकत से इलाके में सनसनी फैल गई और प्रशासन के साथ-साथ राजनीतिक गलियारों में भी हड़कंप मच गया।

स्थानीय लोगों का कहना है कि तस्वीर कल शाम तक बिलकुल सही सलामत थी। लेकिन सुबह होते ही जब लोग टहलने निकले तो देखा कि मुख्यमंत्री की तस्वीर पर किसी ने कालिख पोत दी है। इस बात से साफ संकेत मिलता है कि यह हरकत रात के अंधेरे में की गई। यह न सिर्फ मुख्यमंत्री के प्रति असम्मान की भावना दर्शाता है, बल्कि यह राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और कानून-व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है।

घटना की सूचना मिलते ही इलाके में राजनीतिक हलचल शुरू हो गई। जदयू (जनता दल यूनाइटेड) की भागलपुर इकाई के कार्यकर्ताओं और नेताओं में भारी आक्रोश देखा गया। प्रमुख नेताओं में शिशुपाल भारती, विपिन बिहारी सिंह, रवीश कुशवाहा, बृजेश सिंह, प्रदीप कुशवाहा और अंशु कुशवाहा समेत दर्जनों कार्यकर्ताओं ने मौके पर पहुंचकर घटना की कड़ी निंदा की। उन्होंने इसे एक “राजनीतिक साजिश” करार दिया। उनका कहना था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कुशल प्रशासन और विकास कार्यों से विरोधी दल परेशान हैं और इस तरह की ओछी हरकतें कर रहे हैं ताकि जनभावनाओं को भड़काया जा सके।

जदयू कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री की तस्वीर पर कालिख पोतना केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे राज्य और उसके लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान है। उन्होंने कहा कि यह हरकत लोकतंत्र की मर्यादाओं को लांघने वाली है, जिसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की और आरोपियों को जल्द से जल्द पकड़ने की अपील की।

घटना के बाद पुलिस और प्रशासन हरकत में आ गया है। औद्योगिक थाना पुलिस ने मौके का मुआयना किया और आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच शुरू कर दी है। हालांकि अब तक किसी आरोपी की पहचान नहीं हो सकी है और न ही कोई पुख्ता सुराग हाथ लगा है। पुलिस का कहना है कि वे हर एंगल से जांच कर रहे हैं और जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

इस बीच जदयू कार्यकर्ताओं ने एक विरोध प्रदर्शन का भी आयोजन किया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह केवल एक राजनीतिक विरोध की घटना नहीं है, बल्कि यह समाज में बढ़ती असहिष्णुता और गिरते राजनीतिक स्तर को दर्शाती है। उनका कहना था कि जब मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जा सकता है, तो आम लोगों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं।

इस घटना ने विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों के बीच भी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे एक शरारती तत्व की हरकत मान रहे हैं, तो कुछ इसे एक सोची-समझी साजिश बता रहे हैं, जिसका मकसद राज्य सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाना है।

इस घटना ने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है—क्या यह केवल किसी असंतुष्ट व्यक्ति की निजी नाराजगी थी, या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति काम कर रही है? यह सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि ऐसी घटनाएं लगातार दो शहरों में हुई हैं—पहले पटना और अब भागलपुर। क्या यह कोई संकेत है कि राज्य में राजनीतिक तनाव अपने चरम पर है?

जाहिर है, बिहार की राजनीति में इस घटना ने एक नया मोड़ ला दिया है। आने वाले दिनों में इस घटना को लेकर और भी प्रतिक्रियाएं सामने आ सकती हैं और इससे चुनावी राजनीति में नया विमर्श भी जन्म ले सकता है। वहीं, आम जनता भी इस बात को लेकर चिंतित है कि अगर मुख्यमंत्री की तस्वीर सुरक्षित नहीं है, तो आम नागरिकों की सुरक्षा किसके हाथ में है?

फिलहाल, पूरे राज्य की निगाहें इस जांच पर टिकी हुई हैं कि प्रशासन इस मामले में कितनी तेजी और पारदर्शिता से कार्रवाई करता है। साथ ही यह देखना भी दिलचस्प होगा कि इस घटना का राज्य की राजनीति पर कितना प्रभाव पड़ता है और क्या यह वाकई एक बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है या केवल एक शरारती तत्व की हरकत।

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