बिहार में फर्जी शिक्षकों पर लगातार कार्रवाई के क्रम में भागलपुर जिले के गोराडीह प्रखंड में शिक्षा विभाग ने बड़ी कार्रवाई की है। गोराडीह प्रखंड के अगरपुर पंचायत में तीन फर्जी शिक्षकों को सेवा मुक्त कर दिया गया है, जिन पर अब आपराधिक मुकदमा दर्ज कर राशि वसूली की भी तैयारी की जा रही है। यह निर्णय पंचायत की शिक्षा समिति द्वारा लिया गया है, जिसमें पंचायत सचिव और मुखिया के संयुक्त हस्ताक्षर से आधिकारिक आदेश जारी किया गया है।
फर्जी ठहराए गए शिक्षकों में प्राथमिक विद्यालय गोहारियो की शिक्षिका बबीता कुमारी, शिक्षक नित्यानंद सिंह और प्राथमिक विद्यालय धूरिया के शिक्षक चंद्रजीत कुमार शामिल हैं। इनकी नियुक्ति की वैधता पर स्थानीय निवासी कोमल कुमारी द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई थी, जिसके बाद जांच का आदेश दिया गया।
जांच की जिम्मेदारी एडीएम आपदा प्रबंधन को दी गई थी, जिन्होंने पुष्टि की कि उक्त तीनों शिक्षक फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी कर रहे थे। जांच के आधार पर डीपीओ स्थापना कार्यालय ने 29 सितंबर 2024 को पंचायत को पत्र भेजकर आवश्यक कार्रवाई का निर्देश दिया था। इसके आलोक में 31 जुलाई 2025 को पंचायत की बैठक हुई और तीनों को सेवा मुक्त कर दिया गया।
इन शिक्षकों की नियुक्ति 15 दिसंबर 2014 से मानी जा रही है, यानी इन्होंने एक दशक से भी अधिक समय तक फर्जी रूप से सरकारी वेतन और सुविधाओं का लाभ उठाया। अब उनके खिलाफ सर्टिफिकेट केस दर्ज किया जाएगा, जिसके तहत अब तक की संपूर्ण वेतन राशि की वसूली की जाएगी।
इस संबंध में डीपीओ स्थापना बबीता कुमारी ने बताया कि यह मामला उनके कार्यकाल में नहीं हुआ, बल्कि पूर्व डीपीओ देवनारायण पंडित ने ही इन शिक्षकों को फर्जी घोषित करते हुए पंचायत को पत्र भेजा था। उन्होंने यह भी बताया कि मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है।
गौरतलब है कि भागलपुर में वर्ष 2023 में ही 116 फर्जी शिक्षक चिन्हित किए गए थे, जिनके विरुद्ध 20 एफआईआर दर्ज की गई थी। इन मामलों में सबसे अधिक फर्जी शिक्षक बिहपुर (38)खरीक (18)नवगछिया (11)और पीरपैंती (10) में पाए गए थे। 2024 में अब तक 55 फर्जी शिक्षकों को सेवा मुक्त कर उनके खिलाफ विधिक कार्रवाई शुरू की जा चुकी है।
हालांकि, गोराडीह के उक्त तीनों शिक्षक 2023 की सूची में शामिल नहीं थे। लेकिन कोमल कुमारी द्वारा लोक शिकायत में दायर परिवाद के बाद ही इनकी फर्जी नियुक्ति उजागर हुई। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर कर दिया है।
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