जैसा की आप सबको मालूम ही है की की भारत के किसानों का जीवन बहुत मुश्किल है क्यों की सही वक़्त पर बारिश नहीं होने की वजह से किसानों की फसल खरब हो जाती है कही किसान तो पुरे पुरे साल इतनी मेहनत करते है उसके बाद में भी उनको उनकी मेहनत का फल नहीं मिलता है ऐसा की एक किस्सा हम आपके सामने लेकर आये है जो की मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ है जहा पर . पहाड़ी आदिवासी क्षेत्र में किसानो को खेती करना बहुत ही ज़्यदा मुश्किल हो गया है

वही पर रहने वाला रमेश जो की खेती करना चाहता था मगर उसको यह भी मालूम था की उसका यह करना बहुत मुश्किल होगा जिसकी वजह से उसने 2010 में NAIP (राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना) KVK वैज्ञानिकों से बात की उसके बाद में रमेश ने उनकी सभी बायतो को ध्यान में रखते हुआ सर्दी और बरसात के मौसम में ज़मीन के एक छोटे से पैच में सब्ज़ी की खेती करना शुरू किया था उसके बाद में उसके बाद में उसको यह मालूम हो गया था की उनकी यह जमीन पर सर्दी और बरसात के मौसम की सब्जी की खेती हो सकती है जिसके बाद में उसने अपने काम को शुरू किया पहले उसने अपनी जमीन पर करेला, स्पंज लौकी उगाना शुरू किया उसके बाद में आज उसकी खुद की एक नर्सरी है जब उन्होंने यह काम करना शुरू किया था तब उनको पानी की कमी का सामना करना पड़ा था

उसके बाद में बारिया ने एक बार फिर से NAIP से संपर्क किया और उनकी मदद मांगी उसके बाद में उन्होंने गाइडेंस दिया की वो पानी की बोतलों की मदद से भी सिंचाई कर सकता है उसके बाद में उन्होंने वेस्ट ग्लूकोज की बोतलों की मदद से सिंचाई करना शुरू किया उस वक़्त में वो 20 रुपये किलो से ग्लूकोज प्लास्टिक की बोतलों की खरीदा करता था बारिया ने किया कुछ ऐसा की पहले तो उस बॉटल के ऊपर वाले हिस्से को काट दिया उसके बाद में उसको पौधों के पास लटका दिया

.इस तकनीक की वजह से उनको 0.1-हेक्टेयर भूमि से 15,200 रुपये का लाभ होना शुरू हो गया था बूंद-बूंद करके पानी आता रहते था जिसकी वजह से उसने अपने पौधों को सूखे होने से भी बचा लिया था और ऐसा करने से पानी भी ज़्यदा खरब नहीं होता था मेडिकल वाले अब वेस्ट ग्लूकोज की बोतलों को बहरा भी नहीं डालते है वो पेसो में किस्सनो को बेच देते है आपको बता दे की अभी कुछ वक़्त पहले ही रमेश बारिया की यह तकनीक तो बहुत ही ज़्यदा मशहूर हो गई है

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