बिहार की ब्यूरोक्रेसी से एक बड़ा नाम अब राजनीति की ओर कदम बढ़ाने को तैयार दिख रहा है। राज्य के अपर मुख्य सचिव (शिक्षा विभाग) डॉ. एस. सिद्धार्थ के वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) के फैसले ने सिर्फ प्रशासनिक गलियारों में हलचल नहीं मचाई, बल्कि बिहार की आगामी राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। अपने सादगी भरे अंदाज, प्रशासनिक सख्ती और सुधारवादी सोच के लिए प्रसिद्ध एस. सिद्धार्थ को लेकर चर्चाएं अब केवल एक सेवानिवृत्त अफसर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनके संभावित राजनीतिक भविष्य की ओर इशारा कर रही हैं।

डॉ. एस. सिद्धार्थ को बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने वाले एक प्रमुख नौकरशाह के रूप में जाना जाता है। उन्होंने स्कूलों की व्यवस्था को जांचने के लिए खुद कई जिलों का औचक निरीक्षण किया, कभी वर्चुअल मीटिंग से शिक्षकों से सीधे संवाद किया, तो कभी बाइक या रिक्शा से स्कूल पहुंचकर वहां की हकीकत जानी। यही वजह रही कि वो सिर्फ एक अधिकारी नहीं, बल्कि सिस्टम में बदलाव की उम्मीद के रूप में देखे गए।
### **कौन हैं डॉ. एस. सिद्धार्थ?**
एस. सिद्धार्थ ने 1987 में आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया। इसके बाद 1989 में आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया और फिर आईआईटी दिल्ली से आईटी विषय में पीएचडी पूरी की। इस तरह वो टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट और प्रशासन का अनोखा मिश्रण बनकर उभरे। वे बिहार कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और वर्ष 2020-2021 में उन्होंने हवाई जहाज उड़ाने की ट्रेनिंग भी ली थी।
डॉ. सिद्धार्थ को फोटोग्राफी और बाइकिंग का भी शौक है। अक्सर उन्हें सड़कों पर सामान्य लोगों की तरह घूमते, फुटपाथ पर चाय पीते या चाट खाते देखा गया है। उनकी तस्वीरें कई बार सोशल मीडिया पर वायरल भी हुई हैं, जिसने उनकी ‘डाउन टू अर्थ’ छवि को और मजबूत किया।
### **शिक्षा विभाग में लिए ठोस फैसले**
शिक्षा विभाग में अपर मुख्य सचिव के रूप में डॉ. सिद्धार्थ ने कई कड़े और दूरदर्शी फैसले लिए। उन्होंने फर्जी शिक्षकों की पहचान कर कार्रवाई शुरू की, शिक्षकों की उपस्थिति पर निगरानी सख्त की, ट्रांसफर और पोस्टिंग की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई और स्कूलों में गुणवत्ता सुधार के लिए कई योजनाओं को धरातल पर उतारा। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को डिजिटलाइज करने की दिशा में भी अहम कदम उठाए, जिससे बिहार के सरकारी स्कूलों में तकनीक की पहुंच बढ़ी।
### **क्यों चर्चा में है इस्तीफा?**
डॉ. सिद्धार्थ का कार्यकाल नवंबर 2025 तक था, लेकिन उससे पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे एस. सिद्धार्थ का वीआरएस लेना केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक राजनीतिक कदम भी हो सकता है।
### **राजनीति में संभावित एंट्री**
सूत्रों की मानें तो डॉ. सिद्धार्थ जल्द ही जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में शामिल हो सकते हैं और नवादा जिले की किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। नवादा जिले में वारिसलीगंज, नवादा, गोविंदपुर, हिसुआ, रजौली और काशीचक जैसी विधानसभा सीटें हैं। संभावना है कि जदयू उन्हें किसी शहरी या अर्ध-शहरी सीट से मैदान में उतारे, जहां उनके प्रशासनिक कार्यों की पकड़ और पहचान अधिक रही है।
विशेषकर वारिसलीगंज और नवादा सीटों की चर्चा सबसे ज्यादा है, जहां पिछली बार जदयू को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था। ऐसे में पार्टी एक सख्त, साफ-सुथरी और लोकप्रिय छवि वाले उम्मीदवार को मैदान में उतार कर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहती है।
### **राजनीति में नौकरशाहों की नई पीढ़ी**
एस. सिद्धार्थ यदि चुनाव लड़ते हैं, तो वे बिहार के उन चुनिंदा वरिष्ठ अधिकारियों में शुमार होंगे जिन्होंने प्रशासनिक सेवा के बाद सीधे चुनावी राजनीति में प्रवेश किया। हाल ही में एक और आईएएस अधिकारी दिनेश राय ने भी वीआरएस लिया है, जिनके भी राजनीति में आने की अटकलें हैं। वरिष्ठ पत्रकार इंद्र भूषण के अनुसार, यह घटनाक्रम दर्शाता है कि बिहार की राजनीति अब एक नए मोड़ पर पहुंच रही है, जहां ज़मीन से जुड़े और सिस्टम को भीतर से जानने वाले अफसर सत्ता में भागीदारी के लिए आगे आ रहे हैं।
### **राजनीति की चुनौतियां**
हालांकि प्रशासनिक सेवाओं और राजनीति की कार्यप्रणाली में बड़ा अंतर है। जहां एक अफसर अपने आदेश से फैसले लागू करता है, वहीं एक राजनेता को जनता के बीच रहकर, उनकी भावनाओं और समस्याओं के साथ खुद को जोड़ना होता है। राजनीति में काम करने के लिए सहानुभूति, संवाद और जनसंपर्क सबसे बड़ी पूंजी होती है।
लेकिन एस. सिद्धार्थ की अब तक की कार्यशैली को देखा जाए तो वे जनता से जुड़ने और उनकी जरूरतों को समझने में सक्षम दिखते हैं। शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाने की उनकी ईमानदारी और मेहनत ने पहले ही उन्हें एक भरोसेमंद चेहरा बना दिया है।
### **शिक्षा व्यवस्था पर क्या पड़ेगा असर?**
एस. सिद्धार्थ के इस्तीफे से शिक्षा विभाग में एक शून्य उत्पन्न हो सकता है। हाल के वर्षों में उन्होंने जो सुधार किए, वे लंबी अवधि तक विभाग को दिशा दे सकते थे। उनके जाने के बाद यह देखना अहम होगा कि नया अधिकारी उन सुधारों को जारी रखता है या व्यवस्था फिर पुराने ढर्रे पर लौट जाती है।
### **बिहार की राजनीति में नया अध्याय**
डॉ. एस. सिद्धार्थ का वीआरएस बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत हो सकता है। अगर वे चुनावी राजनीति में कदम रखते हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि एक ईमानदार, तकनीकी रूप से दक्ष और जनता से जुड़ा अफसर राजनीति में किस तरह अपनी पहचान बनाता है।
बिहार की जनता के सामने अब यह विकल्प भी होगा कि वो ऐसे नेताओं को चुने जिन्होंने ज़मीन पर काम किया है, और सिस्टम के भीतर रहकर बदलाव की कोशिश की है।
डॉ. एस. सिद्धार्थ का वीआरएस सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि बिहार की सामाजिक-राजनीतिक संरचना में संभावित बदलाव का संकेत है। यदि वे राजनीति में आते हैं, तो वे बिहार के उन दुर्लभ चेहरों में से एक होंगे, जो प्रशासनिक अनुशासन और जन जुड़ाव का संतुलन साधते हुए लोकतंत्र को एक नई दिशा दे सकते हैं।
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