सहरसा जिले के महिषी प्रखंड के नहरवार गांव में विकास के नाम पर हो रहा मज़ाक अब ग्रामीणों के जीवन पर भारी पड़ने लगा है। घेमरा नदी पर वर्षों पहले शुरू हुए दो पुल आज तक अधूरे पड़े हैं। लाखों-करोड़ों की लागत से शुरू हुए इन पुलों का उद्देश्य था नहरवार और मैना गांव को जोड़ना, लेकिन सरकारी लापरवाही और विभागीय उदासीनता के कारण ये पुल अब सिर्फ कंक्रीट के ढांचे बनकर रह गए हैं।

सबसे हैरानी की बात यह है कि नदी के एक ही स्थान पर दो अलग-अलग पुलों का निर्माण शुरू किया गया था — और दोनों अधूरे रह गए। यह सरकारी तंत्र की दोहरी विफलता की तस्वीर पेश करता है। ग्रामीणों का कहना है कि आज भी उन्हें नदी पार करने के लिए नावों का सहारा लेना पड़ता है या फिर जोखिम उठाकर तैरना पड़ता है।
बरसात के मौसम में जब घेमरा नदी उफान पर होती है, तब हालात और भी गंभीर हो जाते हैं। छोटी-छोटी नावों में नदी पार करना जानलेवा साबित होता है। अब तक कई बार बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के साथ दुर्घटना होते-होते बची है। स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर रोज़मर्रा के कामों के लिए आने-जाने वाले ग्रामीणों को हमेशा डर बना रहता है।
स्थानीय निवासी शिवनारायण यादव बताते हैं, *”हमने प्रशासन से कई बार गुहार लगाई, लेकिन न तो कोई अधिकारी स्थायी रूप से देखने आया और न ही कोई निर्माण दोबारा शुरू हुआ। हमें तो अब लगने लगा है कि सरकार ने इस परियोजना को यूं ही अधूरा छोड़ दिया है।”*
ग्रामीण महिला सरस्वती देवी का कहना है कि बीमार लोगों को अस्पताल ले जाने के लिए नदी पार करना बेहद मुश्किल हो जाता है। कई बार समय पर इलाज न मिलने से स्थिति और बिगड़ जाती है। *”पुल होता तो एंबुलेंस भी गांव तक आती,”* वह कहती हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि दोनों पुलों की नींव बड़े वादों के साथ रखी गई थी। अधिकारियों ने लोगों को बेहतर सड़क और यातायात की सुविधा का सपना दिखाया था, लेकिन सालों बीत जाने के बावजूद यह सपना अधूरा ही रह गया।
**सरकार और प्रशासन पर सवाल:**
अब सवाल यह उठता है कि अगर एक पुल अधूरा रह गया था तो दूसरा शुरू क्यों किया गया? और अगर दूसरा भी अधूरा रहना था तो पैसा क्यों बर्बाद किया गया? यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि बिहार के ग्रामीण इलाकों में अधूरी योजनाओं की एक आम तस्वीर है।

**जनता की मांग:**
नहरवार और मैना गांव के लोग अब सरकार से अपील कर रहे हैं कि इन दोनों अधूरे पुलों का निर्माण कार्य युद्धस्तर पर पूरा कराया जाए। यह सिर्फ एक सुविधा की बात नहीं, बल्कि ग्रामीणों की सुरक्षा और जीवन से जुड़ा मसला है। यदि समय रहते इन पुलों को पूरा नहीं किया गया, तो किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
विकास के नाम पर अधूरी योजनाएं सिर्फ आंकड़ों में अच्छी लगती हैं, लेकिन जमीन पर यह लोगों के जीवन में कठिनाई और असुरक्षा लाती हैं। सहरसा के नहरवार की यह कहानी बिहार में जमीनी स्तर पर शासन की हकीकत को उजागर करती है। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार कब जागती है और इन पुलों को पूरा कर, ग्रामीणों को राहत देती है।
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