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सहरसा जिले के महिषी प्रखंड अंतर्गत भारतमाला परियोजना के तहत चल रहे राजमार्ग निर्माण कार्य में उस वक्त तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई जब सड़क किनारे स्थित एक प्राचीन हनुमान मंदिर को हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई। यह मंदिर वर्षों से ग्रामीणों की आस्था का केंद्र रहा है, जिसे हटाने के विरोध में स्थानीय लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया।

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घटना स्थल महिषी प्रखंड के उस क्षेत्र में है जहाँ से बकौर को उग्रतारा मंदिर से जोड़ने वाला राजमार्ग गुजर रहा है। यह सड़क केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी **भारतमाला परियोजना** का हिस्सा है, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा निर्माण कराया जा रहा है।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर का स्थान ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है। इसे हटाना न केवल आस्था पर चोट है, बल्कि बिना किसी वैकल्पिक प्रबंध के ऐसा करना प्रशासन की संवेदनहीनता को दर्शाता है।

स्थानीय निवासी **संजय कुमार झा** ने कहा, *”हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मंदिर हटाने से पहले कम से कम बातचीत तो होनी चाहिए थी। यह मंदिर हमारे पूर्वजों के समय से यहाँ स्थापित है। जब तक नया मंदिर नहीं बनाया जाता, तब तक इस मंदिर को हटाना किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है।”*

इस विरोध प्रदर्शन के दौरान बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और बुजुर्ग सड़कों पर उतर आए। उन्होंने निर्माण स्थल पर पहुँचकर काम को कुछ समय के लिए रुकवा दिया। प्रदर्शन के चलते अधिकारियों को स्थानीय जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा।

निर्माण कार्य में लगे झारखंड के **बोकारो निवासी अभिषेक कुमार गुप्ता**, जो एनएचएआई की ओर से कार्यरत हैं, ने बताया कि ग्रामीणों को पूर्व में ही समझाया गया था कि मंदिर को हटाने से पहले वैकल्पिक स्थान पर उसका पुनर्निर्माण किया जाएगा। उन्होंने कहा, *”यह एक संवेदनशील मामला है और हम भी नहीं चाहते कि किसी की धार्मिक भावना आहत हो। लेकिन परियोजना के तहत रास्ता मंदिर की जगह से गुजर रहा है, इसलिए हटाना अनिवार्य है। हमने आश्वासन दिया है कि नया मंदिर पहले बनाकर ही पुराना हटाया जाएगा।”*

हालांकि, ग्रामीणों ने अधिकारियों के इस स्पष्टीकरण को अस्वीकार कर दिया और कहा कि जब तक लिखित आश्वासन के साथ वैकल्पिक स्थल पर निर्माण कार्य शुरू नहीं होता, वे पुराने मंदिर को नहीं हटाने देंगे।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए स्थानीय प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा। पुलिस बल और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे और लोगों को शांत करने की कोशिश की। हालांकि, बातचीत के बाद भी कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका और निर्माण कार्य फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया गया है।

इस विवाद ने यह साफ कर दिया है कि विकास और आस्था के बीच संतुलन कायम करना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। जहां एक ओर केंद्र सरकार अधोसंरचना को बेहतर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर कार्य कर रही है, वहीं दूसरी ओर ऐसे मामलों में स्थानीय जनता की भावनाओं को भी उचित सम्मान देना आवश्यक है।

फिलहाल, सभी की निगाहें प्रशासन और एनएचएआई की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे।

यह प्रकरण एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा करता है कि क्या विकास कार्य धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की अनदेखी कर के किया जाना चाहिए, या दोनों के बीच सामंजस्य बनाकर समाधान तलाशना ज्यादा बेहतर रास्ता है।

 

 

 

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