एक बार फिर बिहार की विकास यात्रा को कोसी की लहरों ने गवाही दी है, लेकिन इस बार कहानी अधूरी रह गई। शुक्रवार रात को त्रिमोहन कोसी घाट के पास बने बहुप्रतीक्षित बिहपुर-वीरपुर पुल (NH-106) का एक हिस्सा अचानक भरभरा कर कोसी की धारा में समा गया। इस घटना ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी, वहीं यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या विकास अब भी महज़ एक दिखावा है?

पुल गिरने की खबर जैसे ही फैली, स्थानीय लोगों की भीड़ घटनास्थल पर उमड़ पड़ी। आंखों के सामने करोड़ों की लागत से बना पुल यूं बह जाना, किसी सपने के टूटने जैसा था। ग्रामीणों का कहना है कि ये केवल एक संरचना का ढहना नहीं, बल्कि जनता के उस विश्वास का टूटना है, जो उन्होंने सरकार, सिस्टम और विकास के वादों पर किया था।
कोसी क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता इसे एक बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। उनका साफ कहना है— *“यह हादसा नहीं, घोटाले का मलबा है।”* उनके अनुसार, पुल की नींव ईमानदारी पर नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की बुनियाद पर रखी गई थी, जिसका नतीजा आज सबके सामने है।
स्थानीय ग्रामीणों ने यह भी बताया कि निर्माण कार्य के दौरान ही कई बार गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे थे, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। न तो नियमित जांच हुई और न ही कोई पारदर्शिता रही। अब जब हादसा हो गया, तो NHAI की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठनी लाज़मी हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस पुल का निर्माण राष्ट्रीय महत्व की सड़क (NH-106) पर था और इसका उपयोग हजारों लोगों की दैनिक आवाजाही में होता था। ऐसे में इसकी गिरावट न केवल आर्थिक नुकसान है, बल्कि क्षेत्र के विकास और आपदा-प्रबंधन पर भी गंभीर असर डालेगी।
अब सबसे अहम सवाल यही है—
क्या दोषी इंजीनियरों, ठेकेदारों और अधिकारियों पर कोई सख्त कार्रवाई होगी?
या यह मामला भी दूसरी घटनाओं की तरह “कागज़ी जांच” के हवाले होकर सिस्टम की फाइलों में दब जाएगा?
फिलहाल, कोसी शांत बह रही है, लेकिन उसकी लहरों में एक आक्रोश है। एक ऐसा गुस्सा, जो अब जवाब मांग रहा है— सरकार से, सिस्टम से और उनसे, जिन्होंने इस पुल को खड़ा करने का दावा किया था।
बिहार में जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक हर पुल के साथ एक उम्मीद भी डूबती रहेगी।
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