उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले से एक बेहद चिंताजनक मामला सामने आया है, जहां एक व्यक्ति को अपनी ही दो नाबालिग बेटियों के साथ अनुचित व्यवहार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यह मामला करीब पाँच वर्षों से दबा हुआ था, लेकिन हाल ही में बच्चियों की मां के माध्यम से बात सामने आई, जिसके बाद पुलिस ने संज्ञान लिया और आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
यह घटना समाज और परिवार के बीच रिश्तों की जटिलताओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े करती है।
20 जून को दोनों बच्चियों की मां उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानी के कारण अस्पताल लेकर पहुंचीं। डॉक्टरों द्वारा की गई पूछताछ में बच्चियों ने मानसिक तनाव से जुड़े गंभीर संकेत दिए। मामले की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन ने इसकी जानकारी एक बाल संरक्षण संस्था को दी।
‘एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन’ (AVA) नाम की संस्था को ‘आसरा फाउंडेशन’ से यह सूचना प्राप्त हुई थी कि मथुरा के सदर थाना क्षेत्र की एक महिला, अपनी बेटियों के साथ हो रही समस्याओं के बारे में बात करना चाहती है।
मामले को गंभीरता से लेते हुए, बाल संरक्षण संस्था और पुलिस की टीम ने महिला से संपर्क किया और उसे तथा दोनों बच्चियों को एक सुरक्षित स्थान पर ले जाकर काउंसलिंग करवाई।
पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अमित कुमार के अनुसार, मां शुरू में बहुत डर और संकोच में थी, जिससे मामला दर्ज कराना मुश्किल हो रहा था। लेकिन संस्था और पुलिस की समझदारी भरी कार्ययोजना से धीरे-धीरे सारी बातें सामने आने लगीं।
काउंसलिंग के दौरान बच्चियों द्वारा दिए गए संकेतों को ध्यानपूर्वक रिकॉर्ड किया गया। यह प्रक्रिया बहुत संयम और गोपनीयता के साथ की गई ताकि बच्चियों की पहचान और सुरक्षा पूरी तरह से बनी रहे।
जांच के अगले चरण में बच्चियों की मेडिकल जांच कराई गई, जिसमें उनके द्वारा दिए गए बयानों की पुष्टि हुई। इसके बाद पुलिस ने उचित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की और आरोपी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, यह मामला लंबे समय से चल रहा था, लेकिन घरेलू दबाव, सामाजिक भय और शर्मिंदगी के कारण यह सामने नहीं आ सका।
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बच्चों की सुरक्षा केवल स्कूलों या सार्वजनिक स्थानों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। कभी-कभी खतरा उन जगहों पर भी होता है जिन्हें हम सबसे सुरक्षित मानते हैं।
इस मामले में मां की चुप्पी उस सामाजिक दबाव को दर्शाती है, जिसमें महिलाएं अक्सर सच सामने लाने से हिचकती हैं। हालांकि अंततः मां ने हिम्मत दिखाई और सही कदम उठाया, जो एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
मथुरा पुलिस और सहयोगी संस्था की सक्रियता और संवेदनशीलता ने इस मामले को सही दिशा में पहुंचाया। यदि सही समय पर हस्तक्षेप न किया गया होता, तो यह मामला और भी गंभीर रूप ले सकता था।
यह घटना न केवल कानून व्यवस्था का विषय है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी भी है। परिवारों को बच्चों के व्यवहार और मानसिक स्थिति पर लगातार ध्यान देना चाहिए। यदि कोई असामान्य बात नजर आए, तो उसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
बच्चों की सुरक्षा सिर्फ सरकार या संस्था की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर माता-पिता, शिक्षक, पड़ोसी और जागरूक नागरिक की जिम्मेदारी है।
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