पटना: बिहार में वर्षों से प्रतीक्षित एक बड़ी पहल को राज्य सरकार ने अमल में ला दिया है। अब “किराए की कोख” यानी सरोगेसी को कानूनी मंजूरी मिल चुकी है। इस संबंध में सरकार ने एआरटी एंड सरोगेसी मॉनिटरिंग बोर्ड का गठन कर दिया है, जो पूरे राज्य में सरोगेसी प्रक्रिया की निगरानी और संचालन का कार्य करेगा। यह फैसला उन हजारों दंपतियों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है, जो निसंतान होने के कारण लंबे समय से मानसिक, सामाजिक और आर्थिक पीड़ा झेल रहे थे।

नया बोर्ड और उसकी संरचना
इस मॉनिटरिंग बोर्ड में चिकित्सक, विधायक, महिला अधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, सरकारी अधिकारी और चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल हैं। बोर्ड के पदेन अध्यक्ष प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री होंगे जबकि स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव भी इसमें अहम भूमिका निभाएंगे। बोर्ड का काम होगा सरोगेसी के लिए आवेदन करने वाले इच्छुक दंपतियों और सरोगेट मदर की पूरी प्रक्रिया की जांच कर राज्य सरकार को इसकी अनुशंसा करना।
अब नहीं जाना होगा दूसरे राज्यों में
सरकार के इस फैसले से उन दंपतियों को बड़ी राहत मिलेगी जो अब तक झारखंड, पश्चिम बंगाल या अन्य राज्यों में जाकर लाखों खर्च कर सरोगेसी का सहारा ले रहे थे। वहां न सिर्फ लागत अधिक थी, बल्कि कानूनी और चिकित्सा स्तर पर कई जटिलताएं भी होती थीं। अब बिहार में ही यह प्रक्रिया नियमानुसार, सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से हो सकेगी।
क्या है सरोगेसी?
सरोगेसी यानी “किराए की कोख” एक ऐसी चिकित्सकीय प्रक्रिया है जिसमें कोई महिला किसी दंपती के लिए गर्भ धारण करती है और बच्चे को जन्म देती है। आम बोलचाल में इसे किराए की कोख कहा जाता है, लेकिन चिकित्सकीय भाषा में यह “सरोगेसी” कहलाती है।
सरोगेसी की प्रक्रिया कैसे होती है?
इंदिरा आईवीएफ के प्रमुख एंब्रॉलजिस्ट डॉ. दयानिधि बताते हैं कि इस प्रक्रिया में इच्छुक माता-पिता के शुक्राणु और अंडाणु से लैब में भ्रूण तैयार किया जाता है। फिर उसे सरोगेट मदर के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किया जाता है। सरोगेट मदर सिर्फ बच्चे को जन्म देती है, लेकिन उसकी जैविक मां नहीं होती।

कौन हैं योग्य अभ्यर्थी?
सरोगेसी कानून के अनुसार विवाहित जोड़े ही इस प्रक्रिया के लिए पात्र हैं।
- पुरुष की उम्र 26 से 55 वर्ष के बीच
- महिला की उम्र 23 से 50 वर्ष के बीच
- तलाकशुदा या विधवा महिला की उम्र 35 से 50 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
यदि महिला खुद गर्भ धारण नहीं कर सकती है तो वह सरोगेसी का सहारा ले सकती है। वहीं, विधवा या तलाकशुदा महिलाएं डोनर स्पर्म की मदद से यह प्रक्रिया पूरा कर सकती हैं।
कौन नहीं हैं पात्र?
भारत के सरोगेसी कानून के अनुसार, निम्नलिखित लोग इस प्रक्रिया के लिए पात्र नहीं हैं:
- अविवाहित महिलाएं
- लिव-इन कपल
- समलैंगिक जोड़े
- एकल पुरुष
- वे लोग जिनके पास पहले से संतान है
सरकार का मकसद सरोगेसी को परोपकार की भावना से जोड़ना है न कि इसका व्यावसायिक इस्तेमाल करना।
क्या विदेशी करा सकते हैं सरोगेसी?
नहीं, 2021 में बने सरोगेसी कानून के तहत अब कोई विदेशी नागरिक भारत में सरोगेसी नहीं करा सकता। यह प्रक्रिया केवल भारतीय नागरिकों के लिए अनुमन्य है। साथ ही इसमें किसी भी प्रकार का आर्थिक लेन-देन (मुनाफा आधारित) पूरी तरह से वर्जित है। इच्छुक दंपत्ति सिर्फ सरोगेट मदर के चिकित्सा और बीमा खर्च का वहन कर सकते हैं।
व्यवसायीकरण पर रोक, कड़ी सजा का प्रावधान
सरोगेसी को व्यवसाय का रूप लेने से रोकने के लिए सरकार ने कड़ा कानून बनाया है। अगर कोई सरोगेसी के माध्यम से पैसे कमाने की कोशिश करता है या किसी महिला को गलत तरीके से इसमें शामिल करता है, तो उस पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना और लंबी जेल की सजा का प्रावधान है।

सरोगेट मदर कौन बन सकती है?
सरोगेसी के लिए महिला का 25 से 35 वर्ष के बीच की उम्र में होना जरूरी है। सरोगेट मदर विवाहित या अविवाहित कोई भी हो सकती है, लेकिन वह महिला इच्छुक दंपती की करीबी रक्त संबंधी होनी चाहिए। विशेष परिस्थितियों में ब्लड रिलेशन से अलग महिला को भी अनुमति दी जा सकती है, लेकिन यह विशेष अनुमति के तहत होगा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई महिला सिर्फ एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है। ऐसा इसलिए ताकि महिला के स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
कंसेंट फॉर्म का प्रावधान
प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए इच्छुक दंपती और सरोगेट मदर दोनों को सहमति पत्र यानी कंसेंट फॉर्म पर साइन करना होता है। इसमें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा खर्च, बीमा और अन्य प्रावधानों का स्पष्ट उल्लेख होता है। जन्म के बाद बच्चा कानूनी रूप से इच्छुक दंपति का माना जाता है।
बिहार में क्या होंगे फायदे?
डॉ. दयानिधि का कहना है कि बिहार में मॉनिटरिंग बोर्ड के गठन के बाद IVF और सरोगेसी क्लीनिक का विस्तार होगा। साथ ही लगभग 18-20% निसंतान दंपतियों को राज्य में ही संतान सुख प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। इसके अलावा यह प्रक्रिया कम खर्चीली और सुलभ भी होगी क्योंकि अब दूसरे राज्यों में जाने की आवश्यकता नहीं होगी।
बिहार में क्लीनिक और सुविधा केंद्रों का विस्तार
सरकार के इस फैसले के बाद पटना समेत प्रमुख जिलों में अधिकृत IVF क्लीनिक और प्रजनन केंद्र विकसित किए जाएंगे। इससे चिकित्सा पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा और बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को नई दिशा मिलेगी।
मॉनिटरिंग बोर्ड की भूमिका क्या होगी?
यह बोर्ड राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग की देखरेख में कार्य करेगा। इसका मुख्य काम इच्छुक दंपतियों और सरोगेट मदर की योग्यता की जांच करना, कानूनी प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करना, अनुमति देना और संपूर्ण निगरानी रखना होगा। यह बोर्ड यह भी सुनिश्चित करेगा कि कोई भी व्यावसायिक रूप से सरोगेसी का दुरुपयोग न करे।
निष्कर्ष:
बिहार में सरोगेसी को कानूनी मान्यता मिलना राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल निसंतान दंपतियों के लिए उम्मीद की नई किरण है बल्कि चिकित्सा सेवाओं के विस्तार, सामाजिक जागरूकता और महिलाओं के अधिकारों की दिशा में भी एक अहम पहल है। यह कदम बिहार को चिकित्सा तकनीक और सामाजिक संवेदनशीलता के संगम पर एक नई पहचान देगा।
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