घोषितघोषित

भागलपुर के ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण ‘रॉक कट टेंपल’ को अब संरक्षित घोषित करने की दिशा में ठोस पहल शुरू हो गई है। राज्य सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के सचिव प्रणव कुमार ने इसके लिए निर्देश जारी कर दिए हैं। यह मंदिर गंगा नदी के बीचोबीच स्थित तीन पहाड़ियों पर बसा हुआ है, जिसे स्थानीय लोग ‘कुप्पा घाट’ या ‘तीन पहाड़ी’ के नाम से जानते हैं, वहीं पुरातत्व विशेषज्ञ इसे ‘रॉक कट टेंपल’ के रूप में पहचानते हैं।

घोषित

ऐतिहासिक पहचान और पुरातात्विक महत्व

भागलपुर शहर के समीप गंगा के बीचोबीच स्थित यह स्थल वर्षों से स्थानीय श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। तीनों पहाड़ियों पर स्थित यह क्षेत्र ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्ध है। इतिहासकारों के अनुसार, यहां पर 8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच ‘रॉक कट’ तकनीक से मंदिरों और आश्रमों का निर्माण हुआ था। इनका संबंध पाल और सेन वंश के समय से जोड़ा जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यहां बौद्ध, तांत्रिक और सनातनी परंपराओं के संत-मुनियों का निवास स्थान रहा होगा।

तीनों पहाड़ियों पर तीन अलग-अलग आश्रम स्थापित हैं—नानकशाही आश्रम, तापस आश्रम और बुद्ध आश्रम। इन सभी के अवशेष आज भी पहाड़ियों पर विद्यमान हैं। इन स्थलों पर कई मूर्तियां, शिलालेख, और गुफाएं मौजूद हैं, जो इस स्थान की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह स्थान ‘रॉक कट आर्किटेक्चर’ का जीवंत उदाहरण है और इसे राज्य संरक्षित स्थल घोषित किया जाना न केवल आवश्यक है बल्कि समय की मांग भी है।

जिला प्रशासन और राज्य सरकार की सक्रियता

कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के निर्देश के अनुसार, अब यह प्रक्रिया जिला प्रशासन स्तर से शुरू की जाएगी। इसके उपरांत इसे अधिसूचित कर राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया जाएगा। इस पहल के तहत तीनों पहाड़ियों की नियमित निगरानी, संरक्षण और विकास सुनिश्चित किया जाएगा।

सुरक्षित घोषित किए जाने के बाद यहां पर्यटन सुविधाएं विकसित की जाएंगी, जैसे—साफ-सफाई, घाट की व्यवस्था, पर्यटक सूचना केंद्र, सुरक्षा बल की तैनाती, नाव संचालन की मानक प्रक्रिया आदि। यह सब कुछ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के मानकों के तहत किया जाएगा। प्रशासन का उद्देश्य है कि आने वाले वर्षों में यह स्थान बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल हो।

नाका विहार कर पहुंचते हैं लोग

गंगा नदी के मध्य स्थित इन पहाड़ियों तक पहुंचने के लिए लोग नाव से विहार करते हैं। यह यात्रा खुद में एक विशेष आकर्षण रखती है। नाव विहार के दौरान गंगा के शांत जल, ठंडी हवा और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इस स्थल पर दूर-दराज से पर्यटक आते हैं, खासकर सावन, माघ और छठ पर्व के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है।

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, मंदिरों के चारों ओर गंगा की धारा निरंतर बहती रहती है, जो इस क्षेत्र को और भी अद्वितीय बनाती है। शांत, आध्यात्मिक और प्राकृतिक वातावरण के चलते यह स्थान ध्यान, योग और साधना के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।

विकास के लिए संभावनाएं

स्थानीय प्रशासन के अनुसार, सुरक्षित घोषित होने के बाद इस क्षेत्र के समग्र विकास की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाएगा। यहां बोटिंग स्टेशन, पर्यटक आवास गृह, गाइड सेवा, शौचालय, पेयजल सुविधा, घाट का विकास और लाइटिंग सिस्टम इत्यादि की व्यवस्था की जाएगी। इससे स्थानीय रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।

अभी तक इस स्थल की देखरेख पूरी तरह से स्थानीय संत-मुनियों और ग्रामवासियों द्वारा की जाती रही है। परंतु सुरक्षित स्मारक का दर्जा मिलने के बाद सरकार की सीधी निगरानी में इसका संरक्षण और संवर्धन होगा।

विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण

यह मंदिर और इसका परिवेश केवल देशी ही नहीं, विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है। गंगा के जल से घिरे तीन पहाड़ों पर बसा यह स्थल अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण यूनिक है। यदि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जाए तो यह भारत के प्रसिद्ध रॉक-कट मंदिर स्थलों जैसे—एलोरा, एलिफेंटा या बादामी के समकक्ष स्थान पा सकता है।

यहां आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष व्यवस्था की भी योजना बनाई जा रही है, जिसमें ऑडियो गाइड, मल्टी-लैंग्वेज सूचना पट्ट और ई-गाइड जैसे विकल्पों पर विचार चल रहा है। साथ ही भविष्य में हेलीकॉप्टर से दर्शन यात्रा (हेली टूरिज्म) की भी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

धार्मिकता और आध्यात्मिकता का संगम

तीन पहाड़ियों पर बने आश्रम और मंदिर केवल पुरातत्विक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहां की धार्मिकता श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति प्रदान करती है। विशेषकर ग्रीष्मकालीन छठ, महाशिवरात्रि और सावन मास में यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन हेतु पहुंचते हैं।

यह स्थल भागलपुर और आसपास के जिलों के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर भी है। स्थानीय लोककथाओं और प्राचीन कथाओं में इसका उल्लेख बारंबार मिलता है। यह भी कहा जाता है कि पाल वंश के समय यहां योगी, सिद्ध और तांत्रिक साधना करते थे, जिनके अवशेष आज भी इन गुफाओं और चट्टानों पर देखे जा सकते हैं।

निष्कर्ष

भागलपुर का ‘रॉक कट टेंपल’ एक बहुमूल्य सांस्कृतिक, धार्मिक और पुरातात्विक धरोहर है। इसे सुरक्षित घोषित कर संरक्षित स्मारक का दर्जा देना एक स्वागतयोग्य कदम है। इससे न केवल इसका संरक्षण सुनिश्चित होगा, बल्कि इसका विकास और प्रचार-प्रसार भी हो सकेगा। आने वाले वर्षों में यह स्थल बिहार के टॉप टूरिज्म डेस्टिनेश में अपनी पहचान बनाएगा।

राज्य सरकार और जिला प्रशासन की यह पहल स्थानीय समाज, पर्यावरण और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है। यदि योजनाबद्ध ढंग से काम हुआ तो यह ‘रॉक कट टेंपल’ केवल भागलपुर ही नहीं, पूरे देश का गौरव बन सकता है।

 

 

अपना बिहार झारखंड पर और भी खबरें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

भागलपुर में आत्मा योजना की समीक्षा बैठक सम्पन्न, उप विकास आयुक्त ने योजनाओं के क्रियान्वयन में गति लाने के दिए निर्देश

सहरसा में बड़ी साजिश नाकाम: कार्बाइन और कारतूस के साथ युवक गिरफ्तार, पुलिस की सतर्कता से टली बड़ी वारदात

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *