पटना जिले के मसौढ़ी अनुमंडल स्थित लहसुना गांव की एक साधारण सी तस्वीर इन दिनों लोगों के दिलों में एक खास जगह बना रही है। यह तस्वीर है एक थाने की, लेकिन इस थाने में केवल अपराधियों पर कार्रवाई नहीं होती, बल्कि रोजाना बच्चों की कक्षा भी लगती है। यहां की थाना प्रभारी खुशबू खातून न केवल एक सख्त और ईमानदार पुलिस अफसर हैं, बल्कि एक समर्पित शिक्षिका भी हैं, जिन्हें बच्चे ‘वर्दी वाली टीचर दीदी’ के नाम से जानते हैं।
खुशबू खातून की कहानी प्रेरणा देने वाली है। वे 2018 बैच की दारोगा हैं और लहसुना थाने की प्रभारी पद पर कार्यरत हैं। ड्यूटी के साथ-साथ वह हर दिन गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देती हैं। उनका यह जज्बा आज न केवल मसौढ़ी, बल्कि पूरे बिहार में चर्चा का विषय बन चुका है।
शिक्षा से नाता पुराना
खुशबू का शिक्षा से नाता नया नहीं है। नौकरी लगने से पहले भी वह अपने मोहल्ले के गरीब बच्चों को पढ़ाया करती थीं। उन्हें शुरू से ही पढ़ाने का शौक था और टीचर बनना उनका सपना था। लेकिन जीवन के रास्ते उन्हें पुलिस सेवा में ले आए। फिर भी उन्होंने अपने सपनों को दबने नहीं दिया। आज वह पुलिस अधिकारी होते हुए भी अपने मूल उद्देश्य — समाजसेवा और शिक्षा — से जुड़ी हुई हैं।
एक कक्षा, जो थाने में लगती है
लहसुना थाने में हर शाम 4:30 बजे से 6:30 बजे तक एक अनोखी कक्षा लगती है। यह कक्षा नर्सरी से लेकर कक्षा 5 तक के बच्चों के लिए है। यहां करीब 20 से 30 बच्चे रोज पढ़ने आते हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चे अत्यंत गरीब परिवारों से आते हैं, जिनके पास न ट्यूशन का पैसा है, न किताब-कॉपी खरीदने का साधन। लेकिन खुशबू मैडम न केवल उन्हें पढ़ाती हैं, बल्कि पठन सामग्री भी मुफ्त में उपलब्ध कराती हैं।
बच्चों की आंखों में सपने
इन बच्चों में मुन्नी, बुलबुल, रिया, गुड़िया, नैना, शीलू जैसे नाम शामिल हैं, जिनकी आंखों में अब सपने हैं। मुन्नी बताती है, “हम गरीब हैं। मम्मी स्कूल में झाड़ू-पोंछा करती हैं, पापा दुकान में काम करते हैं। मैडम हमें पढ़ाती हैं और फ्यूचर के बारे में भी बताती हैं।” वहीं बुलबुल का कहना है कि वह भी पुलिस में सेवा करना चाहती है, ठीक वैसे ही जैसे वर्दी वाली दीदी करती हैं।
रिया, जो सरकारी स्कूल में पढ़ती है, कहती है, “मैडम हमें भविष्य के बारे में बताती हैं, पढ़ाती हैं और हमारा सपना बड़ा करने में मदद करती हैं। मैं भी एक दिन पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहती हूं।”
परिवार और गांववालों की सराहना
बच्चों के अभिभावक भी खुशबू खातून की इस पहल की तारीफ करते नहीं थकते। धर्मवीर भारती, जिनकी बेटी यहां पढ़ती है, कहते हैं, “हमारे पास इतने पैसे नहीं कि बच्चों को ट्यूशन भेज सकें। लेकिन वर्दी वाली दीदी बहुत अच्छी तरह से पढ़ाती हैं और बच्चों को समझ में भी आता है।”
गांव के ही प्रमोद कुमार कहते हैं, “ये पहल बहुत ही सराहनीय है। गांव के हर कोने में चर्चा है कि थाना प्रभारी बच्चों को पढ़ाती हैं। ऐसा काम बहुत कम लोग करते हैं।”
पिता का सपना और बेटियों की उड़ान
खुशबू खातून का यह सेवा भाव कहीं न कहीं उनके पिता मोहम्मद शाहिद के सपनों से जुड़ा है। वह किसान हैं और चाहते थे कि उनकी बेटियां सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहें। खुशबू की दो बहनें और दो भाई हैं। तीनों बहनें आज किसी न किसी सरकारी सेवा में कार्यरत हैं—एक पुलिस में, एक टीचर बनी और तीसरी भी सरकारी सेवा में है।
त्योहारों में खुशियां
खुशबू खातून बच्चों के साथ केवल पढ़ाई ही नहीं करतीं, बल्कि त्योहारों पर उन्हें गिफ्ट देकर उनके चेहरों पर मुस्कान भी लाती हैं। चाहे रक्षाबंधन हो, दिवाली या ईद—बच्चों के साथ उनका रिश्ता केवल टीचर और स्टूडेंट का नहीं, बल्कि दीदी और परिवार जैसा बन गया है।
सामाजिक बदलाव की नींव
खुशबू खातून का मानना है कि शिक्षा ही वह औजार है जिससे किसी की भी किस्मत बदली जा सकती है। उन्होंने देखा कि कैसे गरीब बच्चे सड़कों पर खेलते रहते हैं, शिक्षा से दूर रहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने तय किया कि वह अपने समय का एक हिस्सा इन बच्चों की जिंदगी बदलने में लगाएंगी।
ड्यूटी की जिम्मेदारियों के बीच जब सुबह की शिफ्ट होती है तो वह शाम में बच्चों को पढ़ाती हैं, और जब रात की ड्यूटी होती है तो सुबह बच्चों को पढ़ाने का समय निकालती हैं। उनका मानना है कि शिक्षा से ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है और यही भारत को एक बेहतर राष्ट्र बना सकता है।
निष्कर्ष
खुशबू खातून की यह पहल आज के समाज के लिए एक मिसाल है। जहां अधिकतर लोग व्यस्तता का बहाना बनाकर सामाजिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं, वहीं खुशबू जैसे लोग न केवल अपने पेशे के प्रति ईमानदार हैं, बल्कि अपने सामाजिक कर्तव्यों को भी पूरी शिद्दत से निभा रहे हैं।
वह केवल एक पुलिस अफसर नहीं हैं, बल्कि एक समाज सेविका, एक टीचर, एक प्रेरणा हैं। उनकी यह वर्दी अब सिर्फ कानून की रक्षक नहीं, बल्कि बच्चों के सपनों की भी संरक्षक बन चुकी है। ऐसे लोगों को समाज सलाम करता है।
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