बिहार के मुंगेर जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले कमल सिंह और उनकी पत्नी श्रद्धा देवी ने एक ऐसा सपना देखा, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने जीवन की तमाम मुश्किलों का सामना किया। यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उस सोच की भी है जो आज समाज को यह बताती है कि बेटियां बोझ नहीं, बल्कि गर्व होती हैं।
कमल सिंह और श्रद्धा देवी के घर सात बेटियां हैं। गांव के लोग ताना मारते थे—“इतनी बेटियां क्यों पाल रहे हो? शादी में सब खर्च कर दोगे, कुछ हाथ नहीं आएगा।” लेकिन इस दंपती ने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने एक ही बात ठानी थी—**बेटियों को पढ़ाएंगे, काबिल बनाएंगे और आत्मनिर्भर बनाएंगे।**
कमल सिंह कहते हैं, “मेरा पूरा दिन बेटियों के साथ ही बीतता था। सुबह उनके फिजिकल ट्रेनिंग से लेकर रात की पढ़ाई तक मैं उनके साथ लगा रहता था। कोई क्लास छूट न जाए, कोई किताब कम न पड़े—इसका हमेशा ध्यान रखा।” वो खुद बेटियों के लिए कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स की तैयारी में गाइड बनते थे।
परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब थी। खुद कमल सिंह गांव में एक आटा चक्की चलाते थे, जो आज भी उनका सहारा है। उसी चक्की की कमाई से बेटियों की पढ़ाई शुरू हुई। मां श्रद्धा देवी कहती हैं, “हम दोनों ने खेत में मजदूरी की, छोटे-मोटे काम किए, ताकि बेटियों की फीस, किताब और यूनिफॉर्म का खर्च उठा सकें। कभी खाना नसीब नहीं होता था, लेकिन बेटियों की पढ़ाई नहीं रुकी।”
इस जिद और संघर्ष का नतीजा आज सामने है। **सातों बेटियां आज देश की सेवा कर रही हैं।** कोई **बिहार पुलिस** में कार्यरत है, कोई **CRPF**, कोई **SSB** में तैनात है, तो कोई **अपराध शाखा** में अपनी भूमिका निभा रही है। सभी बेटियां अलग-अलग जिम्मेदारियों में निपुणता से काम कर रही हैं।
यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। बेटियों ने भी अपने हिस्से का संघर्ष किया। सुबह 4 बजे उठकर दौड़ना, फिर कोचिंग जाना, घर के कामों में हाथ बंटाना और फिर देर रात तक पढ़ाई—यह सब दिनचर्या का हिस्सा था। लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, क्योंकि उन्हें अपने माता-पिता के सपनों की कीमत पता थी।
कमल सिंह और श्रद्धा देवी अब उसी गांव में चार मंजिला घर में रहते हैं, जो उनकी बेटियों ने उन्हें गिफ्ट में दिया है। उनका छोटा बेटा अब पढ़ाई कर रहा है, और उसकी जिम्मेदारी भी बेटियों ने अपने कंधों पर ली है।
श्रद्धा देवी भावुक होकर कहती हैं, “आज जो लोग ताना मारते थे, वही अब बधाई देने आते हैं। लोग कहते हैं—‘अरे कमल भैया की बेटियां तो कमाल कर गईं।’ हमें गर्व है कि हमने कभी हार नहीं मानी। बेटियां सच में भगवान का आशीर्वाद होती हैं।”
इस कहानी से साफ होता है कि **अगर मां-बाप का भरोसा और बच्चों की मेहनत साथ हो, तो कोई सपना अधूरा नहीं रहता।** समाज चाहे जो कहे, अगर इरादे मजबूत हों तो बेटियां सिर्फ घर नहीं, बल्कि देश को भी रोशन करती हैं।
कमल सिंह की यह कहानी आज हजारों परिवारों के लिए एक मिसाल बन गई है। **जहां लोग बेटियों को बोझ समझते हैं, वहीं यह परिवार उन्हें वरदान मानकर जीता है।** सातों बेटियों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि मेहनत, समर्पण और विश्वास से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
**अंत में बस यही कहना सही होगा—**
**”जिन बेटियों को लोग तानों से तौलते थे, आज वही बेटियां भारत की शान बन गई हैं।”**
अपना बिहार झारखंड पर और भी खबरें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
सहरसा किलकारी बाल भवन में 3 से 22 जून तक रचनात्मक छुट्टियों का आयोजन