भागलपुर में इन दिनों एक अलग ही दृश्य नजर आ रहा है—जहां आमतौर पर भीड़ सड़क पर विरोध या जश्न के लिए उमड़ती है, वहीं यहां की भीड़ जुटी है एक पवित्र और प्रतीकात्मक कार्य के लिए। यह दृश्य है **‘ऑपरेशन सिंदूर’** का, जहां महिलाएं, युवतियां और किसान एक साथ मिलकर **सिंदूर के पौधे** लगा रही हैं। हाथों में हरे-भरे पौधे, चेहरे पर आत्मविश्वास और मन में पर्यावरण, परंपरा और आत्मनिर्भरता का संकल्प। यह अभियान नारी शक्ति और संस्कृति के अद्भुत मिलन का प्रतीक बन गया है।
इस विशेष पहल की अगुवाई कर रही हैं **कर्नल सोफिया**, जिन्होंने देश सेवा में अपनी भूमिका निभाकर पहले ही भारत का मान बढ़ाया है। अब वे सिंदूर के इस अभियान के माध्यम से ग्रामीण और शहरी महिलाओं में सांस्कृतिक जागरूकता, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का संदेश फैला रही हैं।

कर्नल सोफिया के साथ इस अभियान में एक और सशक्त महिला जुड़ी हैं — **बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की महिला कृषि वैज्ञानिक डॉ. साजिदा बानो**। वे न केवल सिंदूर के पौधों के वैज्ञानिक महत्व को उजागर कर रही हैं, बल्कि स्वयं **200 से अधिक पौधे लगाकर** महिलाओं को यह संदेश दे रही हैं कि सिंदूर सिर्फ एक सौंदर्य प्रसाधन नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, परंपरा और आर्थिकी का साधन भी बन सकता है।
डॉ. साजिदा बानो बताती हैं कि “लाल चंदन (Red Sandalwood)” के नाम से जाना जाने वाला यह सिंदूर का पौधा पारंपरिक भारतीय संस्कृति में सुहाग की निशानी के रूप में प्रयुक्त होता है। इसके औषधीय गुण भी अनेक हैं। यदि इसे व्यवस्थित रूप से उगाया जाए, तो यह न केवल घरेलू उपयोग में लाया जा सकता है, बल्कि महिलाओं के लिए एक **सशक्त आय का स्रोत** भी बन सकता है।
इस पूरे अभियान को मजबूत आधार दे रहे हैं बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति **डॉ. डी.आर. सिंह**, जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से यह पहल एक आंदोलन का रूप ले रही है। विश्वविद्यालय ने न केवल पौधों की आपूर्ति की है, बल्कि इसकी वैज्ञानिक खेती के लिए प्रशिक्षण देने की भी योजना बनाई है, ताकि महिलाएं इसे अपने घरेलू आंगन और खेतों में सहजता से उगा सकें।
अभियान की शुरुआत के इस ऐतिहासिक क्षण में भागलपुर के जिलाधिकारी **डॉ. नवल किशोर चौधरी** भी अपनी धर्मपत्नी **श्रीमती रजनी चौधरी** के साथ शामिल हुए। दोनों ने एक खास संदेश देते हुए एक पौधा **”माँ के नाम”** पर लगाया। जिलाधिकारी ने कहा, *”हमारे यहां सिंदूर सिर्फ श्रृंगार की वस्तु नहीं है, यह रिश्तों की गरिमा, नारी शक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।”* उन्होंने इस अभियान को हर घर और गांव तक पहुँचाने का संकल्प भी दोहराया।
इस आयोजन में **गर्ल्स एनसीसी कैडेट्स** की भागीदारी उल्लेखनीय रही। वर्दी में सजी हुई ये कैडेट्स जब हाथों में पौधे लिए खेतों में उतरीं, तो दृश्य किसी सैनिक अभियान जैसा प्रतीत हुआ — लेकिन यह था जीवन, पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा का अभियान।
**ऑपरेशन सिंदूर** का उद्देश्य केवल पौधे लगाना नहीं है, बल्कि यह महिलाओं को पर्यावरण संरक्षण, जैविक कृषि और आर्थिक स्वावलंबन से जोड़ने की एक समग्र पहल है। यह महिलाओं को यह समझाने का प्रयास है कि वे अपने आंगन में, खेतों में या घर की बाड़ी में सिंदूर के पौधे उगाकर अपनी परंपराओं को सहेज सकती हैं और साथ ही अतिरिक्त आमदनी का रास्ता भी बना सकती हैं।
इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में महिला स्वयं सहायता समूहों, छात्राओं और ग्रामीण महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया। डॉ. साजिदा बानो ने पौधों की देखभाल, सिंचाई, कटाई और सिंदूर तैयार करने की प्रक्रिया को भी विस्तार से बताया। उन्होंने यह भी बताया कि 3 से 4 वर्षों में पौधा पूर्ण रूप से तैयार होता है और इससे तैयार सिंदूर प्राकृतिक, हानिरहित और बाज़ार में बिकाऊ होता है।
कार्यक्रम के अंत में महिलाओं ने संकल्प लिया कि वे कम से कम **एक पौधा जरूर लगाएँगी और उसका पालन-पोषण माँ के समान करेंगी**। यह भावनात्मक जुड़ाव इस अभियान को एक सामान्य पर्यावरणीय प्रयास से कहीं अधिक ऊँचाई पर ले गया है।
**ऑपरेशन सिंदूर** आज एक प्रतीक बन चुका है — उस नारी शक्ति का जो श्रृंगार भी कर सकती है, और क्रांति भी। यह उस परंपरा का सम्मान है जो आधुनिकता के साथ कदमताल करते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहना चाहती है।
भागलपुर की धरती से शुरू हुई यह पहल अब पूरे बिहार और फिर देशभर में फैल सकती है — बस जरूरत है इसी तरह के समर्पण, वैज्ञानिक सोच और सामाजिक समर्थन की।
**संक्षेप में**, ऑपरेशन सिंदूर एक ऐसा कदम है जिसमें प्रकृति, परंपरा और प्रगति एक साथ चल रहे हैं — और यह दिखा रहा है कि जब महिलाएं एकजुट होती हैं, तो वे मिट्टी से भी सिंदूर उगा सकती हैं।
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