सहरसा जिले के बैजनाथपुर थाना के तत्कालीन थानाध्यक्ष अमर ज्योति पर गंभीर आरोप लगे हैं। मधेपुरा जिले के एक युवक से मारपीट कर 79 हजार रुपये की जबरन वसूली के मामले में सहरसा पुलिस अधीक्षक हिमांशु ने जांच के बाद कार्रवाई करते हुए आरोपी थानाध्यक्ष के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई है। यही नहीं, दंडाधिकारी की मौजूदगी में उनके सरकारी आवास की जांच कर उसे सील भी कर दिया गया है। घटना ने जिले भर में पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मामला कैसे शुरू हुआ?
यह पूरा मामला 3 मई को शुरू हुआ, जब मधेपुरा जिले के परमानंदपुर पथराहा निवासी अविनाश कुमार पटना से सहरसा ट्रेन से घर लौट रहा था। अविनाश पटना में रहकर BPSC की तैयारी करता है। उसी दिन शाम करीब 5:15 बजे वह सहरसा रेलवे स्टेशन पहुँचा और मधेपुरा जाने के लिए टिकट लेकर प्लेटफॉर्म संख्या तीन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा था। इसी दौरान 5-6 अज्ञात व्यक्तियों ने उसे घेर लिया और जबरन पकड़ कर प्लेटफॉर्म संख्या चार की ओर ले गए। उसका मोबाइल भी छीन लिया गया।
जब अविनाश ने विरोध किया और पूछा कि उसे कहां ले जाया जा रहा है, तो उन लोगों ने धमकी भरे लहजे में पूछा कि तुम्हारे पास कितना पैसा है। इससे वह बुरी तरह डर गया और घबरा गया। तभी मधेपुरा की ट्रेन निकल गई और वह मजबूरन उन लोगों के साथ स्टेशन से बाहर पैदल निकला। प्रशांत मोड़ के पास पहुंचकर उन्होंने थोड़ी देर रुक कर पानी पिया और फिर एक व्यक्ति ने मोबाइल से कॉल कर एक स्कॉर्पियो मंगवाई, जिसमें पुलिस का बोर्ड लगा हुआ था।
थानाध्यक्ष और दलालों की संलिप्तता
अविनाश ने बताया कि स्कॉर्पियो में बैठने के बाद उसने उन लोगों से पूछा कि वे कौन हैं। जवाब में एक व्यक्ति ने कहा कि वह मुकेश पासवान है और उसके साथ बैजनाथपुर थाना के थानाध्यक्ष अमर ज्योति हैं। गाड़ी में अन्य लोग भी थे, जिनमें एक का नाम रूपेश बताया गया। इसके बाद अविनाश को जबरन गाड़ी में बैठाकर बैजनाथपुर की ओर ले जाया गया।
धमकी देकर वसूली की कोशिश
अविनाश के अनुसार, रास्ते भर उसे गालियाँ दी जा रही थीं और प्रताड़ित किया जा रहा था। उससे कहा गया कि यदि वह एक लाख रुपये नहीं देगा तो उसके बैग में कोरेक्स और स्मैक दिखाकर उसे जेल भेज दिया जाएगा। करीब तीन घंटे तक उसे गाड़ी में घुमाया गया और फिर बैजनाथपुर थाने लाकर एक कमरे में बंद कर दिया गया।
एक घंटे बाद उसे बाहर निकाला गया और बेरहमी से पीटा गया। इसके बाद परिजनों से एक लाख रुपये मंगवाने के लिए दबाव बनाया गया। किसी तरह चौकीदार के मोबाइल से अविनाश ने अपने परिजनों से संपर्क किया। जब परिजन थाने पहुंचे तो थानाध्यक्ष अमर ज्योति ने कहा कि यह मामला डीआईयू (डिस्ट्रीक्ट इंटेलिजेंस यूनिट) का है और कुछ रुपये डीआईयू सिपाही को भी देने होंगे।
रुपये लेकर छोड़ा, मोबाइल जब्त
इसके बाद अविनाश के पिता ने मेडिकल कॉलेज के पास थानाध्यक्ष को 29 हजार रुपये नकद दिए। साथ ही, दो पेफोन नंबर पर अविनाश के पिता के दोस्त मो. सद्दाम ने 50 हजार रुपये ट्रांसफर किए। कुल मिलाकर 79 हजार रुपये देने के बाद अविनाश को छोड़ा गया, लेकिन उसका मोबाइल अब तक वापस नहीं किया गया।
एसपी ने की जांच, पाया मामला सही
अविनाश ने इस पूरे मामले की शिकायत सहरसा एसपी हिमांशु को आवेदन देकर की थी। एसपी ने इस मामले की जांच सदर एसडीपीओ आलोक कुमार से कराई। जांच में मामला पूरी तरह सही पाया गया। इसके बाद एसपी ने तत्कालीन थानाध्यक्ष अमर ज्योति को लाइन हाजिर कर दिया और उनके आवास की तलाशी कर उसे सील करने का निर्देश दिया।
गुरुवार शाम को दंडाधिकारी की मौजूदगी में थानाध्यक्ष के आवास की तलाशी ली गई और उसे सील कर दिया गया। इसके बाद बैजनाथपुर थाना में ही अमर ज्योति सहित अन्य पुलिसकर्मी और कथित बिचौलियों पर एफआईआर दर्ज की गई है।
मामले की जांच सिमरी बख्तियारपुर एसडीपीओ को सौंपी गई
वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सिमरी बख्तियारपुर के एसडीपीओ मुकेश कुमार ठाकुर को दी गई है। एफआईआर में अमर ज्योति के अलावा पुलिसकर्मी मुकेश पासवान, रूपेश सहित अन्य अज्ञात लोगों को भी आरोपी बनाया गया है।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल सहरसा जिले में पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे कुछ भ्रष्ट अधिकारी अपनी वर्दी की आड़ में आम लोगों को प्रताड़ित कर अवैध वसूली करते हैं। पीड़ित अविनाश कुमार की हिम्मत और सही समय पर की गई शिकायत से यह मामला सामने आ पाया है। अब देखना यह होगा कि जांच में और क्या तथ्य सामने आते हैं और आरोपी थानाध्यक्ष पर कानून का शिकंजा कितनी जल्दी कसता है।
