पटना। देश में डॉल्फिन की बढ़ती संख्या और संरक्षण के क्षेत्र में बिहार का नाम तेजी से उभर रहा है। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की नदी डॉल्फिन अनुमान रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 6327 डॉल्फिन हैं, जिनमें से 2220 अकेले बिहार में हैं। यह आंकड़ा देश के कुल डॉल्फिन की 35% हिस्सेदारी को दर्शाता है, जो उत्तर प्रदेश (2397 डॉल्फिन) के बाद दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है।
इस रिपोर्ट के अनुसार देशभर में आठ राज्यों की 28 नदियों में 8507 किलोमीटर तक विशेषज्ञों ने सर्वे किया। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब शामिल हैं। बिहार की छह प्रमुख नदियों – गंगा, गंडक, कोसी, महानंदा, कमला-बलान और बागमती – में डॉल्फिन की अच्छी उपस्थिति पाई गई। पुनपुन, कर्मनाशा और ढोरा जैसी छोटी नदियों में भी इनकी कुछ संख्या देखी गई है।
डॉल्फिन विशेषज्ञ आर.के. सिन्हा के अनुसार, “बिहार की नदियों में पर्याप्त पानी और अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र है, जो डॉल्फिन के फलने-फूलने के लिए उपयुक्त है। हालांकि सोन नदी में पानी की कमी के कारण वहां से डॉल्फिन लगभग समाप्त हो चुकी हैं।”
गंगा नदी को डॉल्फिन के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि डॉल्फिन का होना किसी नदी के पारिस्थितिक स्वास्थ्य का संकेतक होता है। इसका मतलब है कि जहां डॉल्फिन हैं, वहां की जैव विविधता और जल गुणवत्ता अच्छी है। यही कारण है कि डॉल्फिन को गंगा नदी के स्वास्थ्य का सूचक माना जाता है।
एक समय था जब बिहार में देश की सबसे ज्यादा डॉल्फिन पाई जाती थीं, लेकिन समय के साथ यह संख्या घट गई। अब सरकारी प्रयासों और संरक्षण अभियानों की वजह से इनकी संख्या में फिर से वृद्धि हो रही है। डॉल्फिन न केवल पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में भी इनकी अहम भूमिका है।
इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि बिहार न केवल डॉल्फिन की संख्या में अग्रणी राज्यों में से एक है, बल्कि यह राज्य डॉल्फिन संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणास्त्रोत भी बन सकता है। जरूरत है इन प्रयासों को और मजबूत करने की, ताकि यह जलजीव जीवित रह सकें और हमारी नदियों की सेहत बरकरार रहे।