देश की पारंपरिक और प्रतिष्ठित चिकित्सा पद्धति यानी आयुर्वेद पर आज भी लोग भरोसा करते हैं पूर्व में आयुर्वेद की पढ़ाई के लिए कॉलेज हुआ करते थे लेकिन धीरे धीरे यह खत्म होने के कगार पर है।भागलपुर व आसपास के जिलों का इकलौता आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा।

अंगकर्ण की धरती भागलपुर के नाथनगर के कर्णगढ़ स्थित राजकीय श्री यतींद्र नारायण अष्टांग आयुर्वेद कॉलेज 2004 ईस्वी से बंद है। हालांकि दो डॉक्टरों के सहारे आयुर्वेद अस्पताल को चलाया जा रहा है जिन्हें आयुर्वेद पर भरोसा है वह इस अस्पताल में अभी भी पहुंचते हैं और इलाज करवाते हैं लेकिन कॉलेज जीर्ण शीर्ण हालात में है।

बिहार व आसपास के राज्यों के छात्र आयुर्वेद की शिक्षा के लिए इस कॉलेज में आते थे लेकिन कॉलेज अब बंद है। इसको शुरू करवाने के लिए अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है लिहाजा भवन भी अब अपने तारणहार की बाट जो रहा है। इसको शुरू करवाने के लिए 2022 में तत्कालीन उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने वादा किया था लेकिन सरकार से अलग होने के बाद वह भी इसे भूल गए और सरकार ने भी इसे नजरअंदाज कर दिया।

कॉलेज की आधारशिला 1946 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी लेकिन राज्य सरकार इसे सहेज नहीं सकी। प्राचार्य डॉ. सी. बी सिंह ने बताया कि भारतीय केंद्रीय चिकित्सा परिषद ने महाविद्यालयों के संचालन के लिए मापदंड तैयार किया यह महाविद्यालय उसपर खड़ा नहीं उतरा जिसके कारण बंद कर दिया गया है लेकिन आयुर्वेद अस्पताल चल रहा है मरीज यहां पहुंचकर इलाज करवा रहे हैं।

आयुर्वेद अस्पताल में अब दो ही डॉक्टर है। शल्य विभाग की डॉ रूबी हेंब्रम महिलाओं से संबंधित बीमारियों का भी इलाज करती है वह बताती है कि आयुर्वेद पर लोग भरोसा करते हैं मरीज यहां कई जिलों से आते हैं यहां जो संसाधन है उस हिसाब से उनका इलाज होता है लेकिन कॉलेज वर्षों से बंद है।

अभी भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हें आयुर्वेद पर भरोसा है यही वजह है कि मीलों दूरी तय कर दुमका ,मुंगेर, बख्तियारपुर, पूर्णिया व आसपास के कई जिलों से मरीज भागलपुर पहुंचकर इलाज करवाते हैं और दवाई भी लेते हैं। सबौर कि प्रियंका 2005 से यहां से दवाई लेकर जा रही है वह बताती है कि उनको या उनके घर में किसी को कोई बीमारी होती है तो वह दवाई यही से ले जाती है और वह ठीक भी होते हैं। वही कॉलेज की बदतर हालत व डॉक्टरों की कमी पर स्थानीय लोग नाराज भी है। मोहम्मद शहाबुद्दीन ने कहा कि 40 साल पहले यहां जो सुविधा थी अब नहीं है। अब डॉक्टरो की भी पूरी तरह से कमी है।

बहरहाल अंग प्रदेश के एकलौते आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल को संवारने की जरूरत है।सरकार अगर अपनी नजरें इनायत करें तो यहां कॉलेज में फिर से पढ़ाई हो सकेगी और ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ेंगे साथ ही भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति भी बरकरार रहेगी।

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