बिहार के भागलपुर में बाढ़ पीड़ित विस्थापित परिवारों की तस्वीरें दर्दनाक हैं। इन्हीं तस्वीरों में एक परिवार के कुछ बच्चे बकरियों के बीच बैठे दिखाई दिए। थाली में रखे सत्तू को वे बकरियों के साथ-साथ खुद भी खा रहे थे।
(भागलपुर) : स्कूल जाने की उम्र में जिले के अधिकांश बच्चे नियति की मार झेल रहे हैं। वे अपने घर वालों के साथ बाढ़ पीड़ित बने जैसे-तैसे जी रहे हैं। चार-पांच दिन से उनके हिस्से केवल सूखा चूड़ा आ रहा है। उनके मां-बाप को यह भी नसीब नहीं है। घोघा में प्रतिदिन कई गांवों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर रहा है। आमापुर, संतनगर, फुलकिया, इदमादपुर फुलकिया, दिलदारपुर, साधूपुर कुशहा रोड के अलावे शुक्रवार को गोपालपुर-पन्नूचक के निचले हिस्सों में बसे गांवों में बाढ़ का पानी फैल चुका है।
बाढ़ के पानी से सलालपुर, बुद्धूचक, शंकरपुर रामनगर, फुलकिया, इदमादपुर दियारा जलमग्न जाने के बाद पलायन कर घोघा पहुंचे बाढ़ पीड़ित लोग गोपालपुर स्कूल, मैदान, एनएच-80 के किनारे और ईंट निर्माण के लिए एकत्रित मिट्टी के ढेर पर तंबू बनाकर शरण लिये हुए हैं।
बाढ़ पीड़ितों को बिजली, राशन, पानी, शौचालय आदि की कोई सुविधा नहीं है। पेयजल के अभाव में नदी का दूषित पानी पी रहे हैं। रात में मोमबत्ती और टार्च से रोशनी का प्रबंध करते हैं। राशन व आवश्यक संसाधनों के अभाव में भोजन पकाने की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बीते कई दिनों से सूखा चूड़ा खाकर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं।
क्या बोले पीड़ित
एनएच -80 के किनारे शरण लिये हुए शंकरपुर दियरा पंचायत के रामनगर गांव निवासी बाढ़ पीड़ित चकतलाल मंडल (75) कहते हैं कि बाढ़ के पानी में सत्तू सहित सारी खाद्य सामग्री भीग गई है। कई दिन से हम लोगों ने भोजन नहीं देखा है। राशन नहीं है और पकाने के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं है। पानी में भीग चुके चूड़ा को धूप में सुखाकर बच्चों को खिला रहा हूं। भोजन की वैकल्पिक खाद्य सामग्री सत्तू भीग जाने से हमलोगों को ज्यादा परेशानी हो रही है।
पशुचारा की किल्लत
कई बाढ़ पीड़ित मवेशी के साथ शरण लिये हुए हैं। उन्हें मवेशियों के लिए पशुचारा की भारी किल्लत हो रही है। हरिप्रसाद मंडल, योगेंद्र मंडल, जुट्ठन मंडल आदि कहते हैं कि हमें अपने से ज्यादा मवेशियों की चिंता है। पशुचारा की व्यवस्था में मेरा दिनभर का समय व्यतीत हो जाता है। इसके बाद भी उन्हें भरपेट चारा नहीं दे पा रहा हूं।