बिहार के पूर्णिया जिले में अमेरिकी विज्ञानियों की टीम जलवायु अनुकूल खेती के विषय में जानकारी लेने और जनजागरुकता करने पहुंची थी। इस दौरान सुखाड़ में भी लहलहाती फसल देख अमेरिकी विज्ञानी चकित हो उठे। विज्ञानी पूर्णिया के पांच गांवों में हो रही जलवायु अनुकूल खेती को देखने पहुंचे थे।
पूर्णिया: ग्लोबल वार्मिंग के दौर में जलवायु अनुकूल खेती की बढ़ती आवश्यकता अब विकसित देशों में भी महसूस की जा रही है। इसी सिलसिले में टाटा कार्नेल इंस्टीट्यूट, अमेरिका के कृषि विज्ञानियों के एक दल ने पूर्णिया के गांवों में पहुंच खेती का हाल जाना। इन्होंने विशेषकर जिले के उन पांच गांवों में लगी फसल का जायजा लिया, जहां कृषि विज्ञान केंद्र, जलालगढ़ की देखरेख में जलवायु अनुकूल खेती हो रही है। इस दौरान कम बारिश वाले क्षेत्रों (सूखा प्रभावित) में फसलों को लहलाता देख विज्ञानी चकित हो गए।
अमेरिकी विज्ञानियों ने खेती की नवीन तकनीक, किसानों को जागरूक करने के प्रयास सहित कृषि विकास को लेकर जमीन पर चल रहे प्रयास को भी जाना। इस दौरान विज्ञानियों की किसानों के साथ चौपाल भी जमी और किसानों ने उन्हें खेती के व्यावहारिक ज्ञान से भी अवगत कराया। सुखाड़ के बीच खेतों में लहलहाती फसल देख अमेरिकी विज्ञानी चकित भी रह गए। अमेरिकी विज्ञानियों ने कृषि विज्ञान केंद्र, पूर्णिया प्रक्षेत्र में चल रहे दीर्घ अवधि प्रायोगिक प्रत्यक्षण प्लांट का भ्रमण कर जलवायु अनुकूल चल रहे कृषि कार्यक्रम को देखा। साथ ही विभिन्न तकनीकों से लगाई गई खरीफ फसलों का अध्ययन एवं निरीक्षण किया।
इस टीम में शामिल विज्ञानी डा. मैथ्यू अब्राहम, लोगन मिलोरड, पायल सेठ, मनोज कुमार व डा. नवीन ने हर पहलू का बारिकी से अध्ययन किया। इस मौसम में मूंगफली, सोयाबीन, खरीफ मक्का तथा तिल की लहलहाती फसलों ने उन्हें खूब आकर्षित किया। विज्ञानियों ने जीरो टीलेज तकनीक, रेज बेड तकनीक, अंतर्वर्ती फसल उत्पादन तकनीक, धान की सीधी बोआई (डीएसआर तकनीक) आदि को भी जाना। साथ ही तकनीकों का मूल्यांकन टीम के सदस्यों द्वारा लाभ-लागत अनुपात के माध्यम से भी किया गया।
भ्रमण के क्रम में उन्होंने परंपरागत विधि से धान की रोपनी तथा मशीन द्वारा धान की सीधी बोआई का भी तुलनात्मक अध्ययन किया। इस दौरान कृषि विज्ञान केंद्र की वरीय विज्ञानी एवं प्रधान डा. सीमा कुमारी तथा शस्य विज्ञानी डा. गोविंद कुमार भी मौजूद थे।