रूस-यूक्रेन और फिर चीन-ताइवान के बीच तनाव के चलते दो बार ये टेस्ट लॉन्च स्थगित कर दिया गया था. हालांकि अब इसे सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है. ICBM परमाणु सक्षम मिसाइल है, जो दुनिया भर में कहीं पर अपने टारगेट को भेदने में सक्षम है.

संयुक्त राज्य अमेरिका ने मंगलवार को लंबी दूरी तक वार करने वाली मिनटमैन 3 इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया. इस दौरान आसमान में एक तेज रोशनी दूर तक दिखाई दी. अमेरिका की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि परीक्षण सफलतापूर्वक रहा. दरअसल, पहले रूस-यूक्रेन और फिर चीन-ताइवान के बीच तनाव के चलते दो बार ये टेस्ट लॉन्च स्थगित कर दिया गया था. हालांकि अब इसे सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है. यूएस ने कहा कि लॉन्च को पहले टाल दिया गया था ताकि चीन इसे किसी और तरह से न समझे. 

बता दें कि चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. उधर, यूएस स्पीकर नैंसी पेलोसी और अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल की ताइवान यात्रा के बाद चीन चिढ़ा हुआ है. उसने तब ही ताइवान को घेरकर मिलिट्री ड्रिल शुरू कर दी थी. अब चीन ने ताइवान के आसपास अपनी लाइव मिलिट्री ड्रिल को और ज्यादा बढ़ाने का ऐलान कर दिया है. ताइवान ने भी इसकी पुष्टि की है.

ये है मिसाइल की खासियत

अमेरिकी सैना ने बयान जारी कर कहा, परीक्षण अमेरिकी परमाणु बलों की तत्परता को दर्शाता है और देश के परमाणु निवारक की घातकता और प्रभावशीलता में विश्वास प्रदान करता है. अधिकारियों के अनुसार मिसाइल ने 15,000 मील (9,660 से अधिक KM) प्रति घंटे से अधिक की गति से 4200 मील (6760 किलोमीटर) से अधिक की यात्रा कर लक्ष्य को सटीक रूप से टारगेट किया. ICBM परमाणु सक्षम मिसाइल है, जो दुनिया भर में कहीं पर अपने टारगेट को भेदने में सक्षम है.

जानकारी के मुताबिक रफ्तार के कारण इस बैलिस्टिक मिसाइल को किसी भी एयर डिफेंस के जरिए रोकना बहुत मुश्किल है. इस मिसाइल को जमीन में बने अंडरग्राउंड साइलो में रखा जाता है. 

श्रीलंका के बंदरगाह पर चीन का खास जहाज तैनात

ताइवान के साथ चलते तनाव के बीच चीन ने अपना एक खास जहाज श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा कर दिया है. कहने को चीने इसे रिसर्च वेसल कहता है. लेकिन असल में यह जासूसी का काम करता है. यह जहाज सैटेलाइट्स की ट्रैकिंग और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) की निगरानी में काम आता है. यानी चीन अपनी रक्षा के लिए इस जहाज को अपने द्वारा लीज पर लिए गए बंदरगाहों पर तैनात कर सकता है.

चीन और ताइवान क्यों है टकराव? 

बता दें कि ताइवान और चीन के बीच जंग काफी पुरानी है. इस बीच अमेरिका के प्रतिनिधिमंडल के ताइवान यात्रा से चीन भड़का हुआ है. चीन ने चेतावनी भी जारी की थी कि अमेरिकी नेता ताइवान की यात्रा न करें. हालांकि इसको दरकिनार कर अमेरिका के प्रतिनिधियों ने ताइवान की यात्रा की. दरअसल, 1949 में कम्यूनिस्ट पार्टी ने सिविल वार जीती थी. तब से दोनों हिस्से अपने आप को एक देश तो मानते हैं लेकिन इसपर विवाद है कि राष्ट्रीय नेतृत्व कौन सी सरकार करेगी. चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है, जबकि ताइवान खुद को आजाद देश मानता है.

दोनों के बीच अनबन की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हुई. उस समय चीन के मेनलैंड में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और कुओमितांग के बीच जंग चल रही थी. 1940 में माओ त्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने कुओमितांग पार्टी को हरा दिया. हार के बाद कुओमितांग के लोग ताइवान आ गए. उसी साल चीन का नाम ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ और ताइवान का ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ पड़ा. चीन ताइवान को अपना प्रांत मानता है और उसका मानना है कि एक दिन ताइवान उसका हिस्सा बन जाएगा. वहीं, ताइवान खुद को आजाद देश बताता है. उसका अपना संविधान है और वहां चुनी हुई सरकार है.

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