नीतीश सरकार महिलाओं को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही है लेकिन फिलहाल जो सर्वे आया है उसमें बिहार की महिलाओं को काफी पीछे बताया गया है. पीरियोडिक लेबर फोर्स 2020-21 का सर्वे क्या कहता है पढ़िए…
पटना: भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की ओर से पीरियोडिक लेबर फोर्स 2020-21 का रिपोर्ट जारी की गयी है जिसमें पता चलता है कि बिहार में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत देश भर में सबसे कम है. वहीं शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश में तमाम योजनाएं चलाए जाने के बावजूद महिलाएं फिसड्डी हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में महज 27.8% महिलाएं ही दसवीं पास हैं जो राष्ट्रीय औसत 40.7% से काफी कम है.
उच्च पदों पर सबसे कम बिहार की महिलाएं: वहीं अगर कामकाजी महिलाओं की बात करें तो प्रदेश में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत 12.6% है जबकि राष्ट्रीय औसत 29.8% है. इन सबके अलावा उच्च पदों पर महिलाओं के पहुंचने की बात करें तो जम्मू कश्मीर दादर नगर हवेली और अंडमान निकोबार को छोड़ दें तो विधायिका से लेकर उच्च प्रबंधकीय पदों तक में सबसे कम 7.8% बिहार की महिलाएं पहुंच रही है. जबकि पंचायती राज में बिहार सरकार ने महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण और सरकारी नौकरी में 33 फासदी आरक्षण सुनिश्चित किया है. बिहार में ग्रेजुएशन की डिग्री के बाद नौकरी के लिए जाने वाली महिलाओं की बात करें तो प्रदेश में 0.4 प्रतिशत महिलाएं ही काम करने जाती हैं जो देश में सबसे कम है जबकि राष्ट्रीय औसत 2.4% का है.
तमाम योजनाओं के बावजूद पीछे हैं महिलाएं: बिहार सरकार कक्षा 1 से लेकर के पीजी तक महिलाओं की शिक्षा निशुल्क किए हुए है. इतना ही नहीं मैट्रिक, इंटर और ग्रेजुएशन पास करने के बाद उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन राशि भी सरकार की ओर से दी जाती है. प्रदेश के सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए फॉर्म भरना निशुल्क है. महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर जीविका और अन्य माध्यम से कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं लेकिन इन तमाम योजनाओं के बावजूद प्रदेश में महिलाओं की स्थिति क्यों देश भर में सबसे कम है? इस पर बात करते हुए प्रदेश के जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ अमित बख्शी ने इसके पीछे कई कारण बताए हैं.
क्या कहते हैं अर्थशास्त्री: डॉ अमित बख्शी बताते हैं कि केरल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश जैसे प्रदेश में विकास को गति देने की योजनाएं काफी वर्षो पूर्व शुरू हो गए थे जिसका परिणाम बाद के वर्षों में दिखने लगा. लेकिन बिहार में विकास की योजनाएं हाल-फिलहाल के दशक में शुरू हुई है और इसका परिणाम अगले पांच से 10 वर्षों बाद देखने को मिलेगा. शिक्षा के अभाव में जो युवा अनस्किल्ड लेबर बन रहे थे वह काम के तरफ जाने की बजाए शिक्षा बेहतर करने के कार्य में लग गए. ऐसे में कुछ समय के लिए प्रदेश में कामकाजी महिलाओं और पुरुषों का प्रतिशत थोड़ा कम हुआ लेकिन अब फिर से तेजी में बढ़ना शुरू हो गया है.
“झारखंड जब बिहार से अलग हुआ तो बिहार की हालत और खराब हो गई. सभी उद्योग झारखंड में थे इसी का नतीजा है कि आज प्रदेश में कामकाजी महिलाओं की संख्या कम है और झारखंड में राष्ट्रीय औसत से भी अधिक 35.6% है. साल 2000 के बाद प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में विकास को लेकर कार्य शुरू किए गए और सभी जानते हैं कि पढ़ाई का सीधा संबंध रोजगार से होता है. ऐसे में महिलाओं की शिक्षा बेहतर करने के लिए सरकार की तरफ से योजनाएं शुरू की गई.”- डॉ अमित बख्शी, अर्थशास्त्री
‘कामकाजी महिलाओं की स्थिति भी सुधरेगी’: अर्थशास्त्री ने कहा कि योजनाएं शुरू करने के बाद ही यू शेप में विकास की गति पकड़ती है. आज प्रदेश में विकास के हर सूचकांकों में बाकी प्रदेशों की तुलना में विकास दर बिहार का सबसे अधिक है और आने वाले समय में सूचकांकों में बिहार की स्थिति और बेहतर होगी. उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में प्रदेश की लगभग 48 फीसदी आबादी 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग तक की है जो कामकाजी के श्रेणी में नहीं आते हैं यानी कि यह डिपेंडेंट होते हैं. महिलाओं की शिक्षा में जिस प्रकार से प्रदेश में कार्य किए जा रहे हैं निश्चित तौर पर आने वाले समय में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति भी बेहतर होगी और प्रदेश में कामकाजी महिलाओं की स्थिति भी सुधरेगी.
‘प्रदेश में पितृसत्तात्मकता हावी’: वहीं समाजशास्त्री विद्यार्थी विकास ने बताया कि प्रदेश में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत काफी कम है. महिलाओं की शैक्षणिक दर भी कम है इसके कई कारण है. आज भी कहीं ना कहीं प्रदेश में पितृसत्तात्मकता हावी है. लड़कियां 10वीं 12वीं पास करती है कि परिवार में लोग उसकी शादी की तैयारी में लग जाते हैं और कम उम्र में ही शादी कर देते हैं. जिससे उसकी पढ़ाई प्रभावित हो जाती है और ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी संख्या सर्वाधिक है.
“महिलाएं यदि अच्छी शिक्षा हासिल कर ले तो भी शादी के बाद अधिकांश परिवार वाले महिला को झूठे शानो शौकत के कारण छोटे-मोटे काम करने नहीं देते. महिलाओं पर घर के कार्य का बोझ डाल दिया जाता है. धीरे-धीरे लोगों की मानसिकता प्रदेश में बदल रही है लेकिन इसे तेजी से बदलने की आवश्यकता है ताकि बिहार में महिलाओं की स्थिति बेहतर हो सके. महिलाओं की स्थिति प्रदेश में बेहतर होगी तभी प्रदेश भी विकास की दिशा में अव्वल बनेगा.” -विद्यार्थी विकास, समाजशास्त्री