साल 2017 में रिलीज हुई अक्षय कुमार की फिल्म *‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’* ने ग्रामीण भारत की एक गंभीर समस्या—शौचालय की कमी—को उजागर किया था। तब इस फिल्म को कई लोगों ने एक सामाजिक संदेश देने वाला सिनेमा माना था, लेकिन अब बिहार के रोहतास जिले से एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां यह फिल्मी कहानी हकीकत बनकर उभरी है।
दरअसल, रोहतास जिले के डालमियानगर थाना क्षेत्र में एक महिला ने शौचालय की सुविधा नहीं होने और पारिवारिक उत्पीड़न से तंग आकर अपने ससुराल को अलविदा कह दिया था। सात साल पहले उसकी शादी डालमियानगर के ही एक युवक से हुई थी। शुरुआती दिनों में सब कुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ समय बाद ही परिस्थितियाँ बदलने लगीं।
महिला ने आरोप लगाया कि ससुराल वालों ने मामूली घरेलू विवाद के चलते उसे शौचालय का उपयोग करने से रोक दिया। न सिर्फ रोक लगाई गई, बल्कि उसके साथ मारपीट भी की जाने लगी। पति को शराब की लत थी और नशे में अक्सर उसे प्रताड़ित किया जाता था। हालात इतने बिगड़ गए कि वह अपनी पांच साल की बेटी को लेकर एक साल पहले मायके लौट गई।
इस दौरान सुलह की कई कोशिशें हुईं, लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगी। आखिरकार महिला ने *भारतीय मानवाधिकार एसोसिएशन (पटना प्रमंडल)* की अध्यक्षा रत्ना सिन्हा से संपर्क किया। पीड़िता की शिकायत पर मानवाधिकार संस्था ने संज्ञान लेते हुए एक तीन सदस्यीय टीम का गठन किया जिसमें रत्ना सिन्हा, मनीषा श्रीवास्तव और डॉ. पाठक शामिल थे।
टीम ने दोनों पक्षों से बातचीत की और कई दौर की काउंसलिंग के बाद सुलह कराने में सफलता हासिल की। पति ने अब न सिर्फ अपनी गलतियों को स्वीकारा, बल्कि वादा किया कि वह अब से पत्नी और बेटी को सम्मान और सुरक्षा देगा। महिला ने भी विश्वास जताया कि अब उसे प्रताड़ित नहीं किया जाएगा और इसलिए वह अपने ससुराल लौट रही है।
महिला ने बताया,
> *”मेरे ससुराल में शौचालय नहीं था। मामूली बातों पर मुझे प्रताड़ित किया जाता था, शौच पर भी पाबंदी लगा दी गई थी। पति शराब पीकर मारपीट करता था। इसलिए मैं मायके आ गई थी। अब सुलह हो गया है और मुझे यकीन है कि अब सब कुछ ठीक रहेगा।”*
पीड़िता के पिता, जो कि एक रिटायर्ड होमगार्ड हैं, ने भावुक होकर कहा,
> *”बेटी का ससुराल छोड़ मायके में रहना एक पिता के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात होती है। पिछले एक साल से परेशान था, लेकिन मानवाधिकार संस्था की टीम ने मेरी बेटी को नया जीवन दिया है। उनका यह प्रयास हमारी बेटी के लिए एक नई शुरुआत है।”*
मानवाधिकार एसोसिएशन की अध्यक्षा रत्ना सिन्हा ने कहा,
> *”महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा और बुनियादी सुविधाओं की कमी आज भी एक बड़ी चुनौती है। संस्था को जब पीड़िता की शिकायत मिली तो हमने इसे गंभीरता से लिया और सुलह का प्रयास किया। हमारी कोशिश है कि ऐसे परिवार उजड़ने से पहले फिर से बस जाएं।”*
सुलह के बाद मानवाधिकार टीम की मौजूदगी में महिला की ससुराल में विदाई की गई। अब वह उम्मीद और विश्वास के साथ अपने पति और बेटी के साथ एक नई शुरुआत करने जा रही है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सिर्फ फिल्में नहीं, बल्कि समाज में भी शौचालय जैसी बुनियादी जरूरतों की अनदेखी बड़े पारिवारिक संकट का कारण बन सकती है। साथ ही यह भी दिखाया कि जब सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो कोई भी उजड़ा घर फिर से बस सकता है।
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