“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी…”
महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, बस किरदार और पीड़ा बदल गई है। अगर बिहार की बात करें तो कह सकते हैं”बाढ़ की कहानी, इसी में जिंदगानी।”
हर साल की तरह इस साल भी बिहार की नदियां उफान पर हैं। गंगा हो या कोसी, पानी का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा। और इसका सबसे बड़ा असर उन ज़िंदगियों पर पड़ता है जिनका हर दिन पानी से दो-दो हाथ करने में ही गुजरता है।
भागलपुर के पीरपैंती प्रखंड स्थित बाकरपुर गांव की यही कहानी है, जहां दूल्हा देवमुनी कुमार ने नाव से बारात निकाली। गांव चारों ओर से गंगा की बाढ़ में घिर चुका है, रास्ता नहीं, साधन नहीं—फिर भी शादी तो तय थी।
नाव बनी ‘लग्जरी’ सवारी
देवमुनी की शादी एक महीने पहले तय हुई थी। दूल्हे के पिता रामदेव मंडल ने बताया, “कटिहार के मनिहारी प्रखंड के कटाकोष गांव बारात जानी थी, लेकिन ऐन मौके पर बाढ़ ने सब कुछ डुबो दिया।”
देवमुनी बताते हैं, “शुरुआत में स्कॉर्पियो से कुछ दूर तक गए, फिर पैदल गंगा किनारे पहुंचे। नाव वहीं खेत के पास खड़ी करवाई थी। फिर नाव में बारात चढ़ी और गंगा पार की गई। उस पार एक किलोमीटर और पैदल चलना पड़ा, फिर ई-रिक्शा से ससुराल पहुंचे।”
‘शादी के सपने बाढ़ में बह गए’
देवमुनी की आंखों में उस दिन की बारिश अब भी ठहरी है। “जब घर से निकले तो आसमान साफ था, लेकिन नाव पर चढ़ते ही बारिश शुरू हो गई। झमाझम बारिश में भींगते हुए लड़की के घर पहुंचे।”
बाढ़ के चलते कोई बैंड-बाजा नहीं था, कोई तामझाम नहीं। देवमुनी कहते हैं, “दिल में कसक रह गई। सपने थे कि शादी धूमधाम से करूंगा, लेकिन सब चौपट हो गया।”
सामान भी नाव से ही लाना पड़ा
नाव ही एकमात्र सहारा बनी। ससुराल से लौटते वक्त पलंग, गद्दा, गोदरेज, कुर्सी-टेबल—सब नाव पर ही लादकर लाना पड़ा। “सड़क होती तो दो घंटे में पहुंच जाते, लेकिन बाढ़ ने 35 किलोमीटर की दूरी 8 घंटे में तय कराई,” देवमुनी कहते हैं।
हर साल दोहराती है खुद को बिहार की त्रासदी
बिहार और नेपाल में लगातार हो रही बारिश के कारण गंगा और कोसी नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। राज्य के कई जिलों के निचले इलाकों में बाढ़ का पानी घुस चुका है। लोग घर छोड़ने को मजबूर हैं। सैकड़ों गांवों का संपर्क टूट चुका है।
ये कहानी सिर्फ देवमुनी की नहीं, हर साल हजारों लोगों की है—जहां सपने सजे तो सही, लेकिन पानी में बह गए। शादी हो या श्राद्ध, खेत हो या स्कूल—बिहार में बाढ़ का पानी सब कुछ निगल जाता है।
और तब कहने को सिर्फ एक ही पंक्ति बचती है—
“बाढ़ की कहानी, इसी में जिंदगानी…”
