गंगागंगा

बिहार के भागलपुर जिले के इस्माइलपुर के पास बिंदटोली, बुद्धचक और कमलकुंड गांवों के लोगों की जिंदगी गंगा की धारा में बह गई है। खेतिहर जमीन, आशियाना और वर्षों की मेहनत – सब कुछ गंगा लील चुकी है। जो संपन्न थे, वे किसी तरह दूसरी जगह जाकर बस गए, लेकिन जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, वे आज भी रिंग बांध के किनारे झोपड़ी बनाकर जीवन काट रहे हैं।

प्रशासन ने कटाव रोकने के लिए रिंग बांध तो बना दिया, लेकिन अब वहीं से लोगों को हटाने का फरमान भी जारी कर दिया है। करीब 400 परिवार इस रिंग बांध के किनारे रह रहे थे। इनमें से कुछ को वास भूमि का पर्चा मिला तो वे चले गए, लेकिन अभी भी करीब 100 परिवार ऐसे हैं जिनके पास न जमीन है, न घर और न ही कोई सहारा।

गंगा
गंगा

बाढ़ ने छीना सबकुछ, सरकार की राहत अधूरी

2024 की बाढ़ इस इलाके के लिए सबसे बड़ा कहर बनकर आई थी। इस्माइलपुर-बिंदटोली तटबंध के स्पर-7 और 8 का 142 मीटर हिस्सा टूट गया था। रातों-रात पानी इस्माइलपुर की तीन पंचायतों और गोपालपुर प्रखंड के 44 गांवों में घुस गया। इस तबाही में 26,453 परिवारों के 1,00,694 लोग प्रभावित हुए।

बिंदटोली के ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने वास भूमि के पर्चे देने की जिम्मेदारी मुखिया के माध्यम से तय की है, लेकिन उनके गांव में मुखिया ही नहीं है। रामजी पासवान और सुघो मंडल जैसे ग्रामीण कई बार अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। अधिकारी केवल एक ही बात कहते हैं – “जगह खाली करो, बाद में इंतजाम हो जाएगा।”

रामजी पासवान दुखी होकर कहते हैं, “अब कहां जाएंगे? कहीं भी झोपड़ी बना लेंगे।” रवीन्द्र कुमार का घर बुद्धचक में था, जहां अब केवल गंगा बहती है। उनकी 25 एकड़ खेती खत्म हो चुकी है। फिर भी वे अब भी जमीन की रसीद कटवा कर सरकार को टैक्स दे रहे हैं – इस आस में कि शायद कभी गंगा मैया को रहम आ जाए।

कटाव रोकने को करोड़ों का खर्च, फिर भी राहत अधूरी

इस्माइलपुर-बिंदटोली तटबंध की लंबाई 8.30 किमी है। इसमें से 633 मीटर क्षेत्र में कटाव हुआ, जिससे 18 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। मरम्मत के लिए सरकार ने 47.5 करोड़ का इस्टीमेट बनाया।

तटबंध पर गंगा की तेज धारा को देखते हुए सीट पाइलिंग का काम शुरू किया गया है। बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल नवगछिया के एसडीओ अमितेश सिंह ने बताया कि यह काम नई तकनीक से हो रहा है। गंगा की 22 मीटर गहराई में लोहे की चादरें डाली जा रही हैं। स्पर 7 और 8 के बीच यह काम तेजी से चल रहा है। वहीं, स्पर 6 में 160 मीटर क्षेत्र की मरम्मत पर 2.5 करोड़ और स्पर 9 में 270 मीटर में 5 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं।

सवाल अनगिनत, जवाब नहीं

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार तटबंध बचाने के लिए करोड़ों खर्च कर रही है, तो जिन लोगों ने अपना सब कुछ खोया, उनके लिए ठोस इंतजाम क्यों नहीं हो रहे? वास भूमि का पर्चा न मिलने की वजह से सैकड़ों लोग असुरक्षित स्थिति में रह रहे हैं।

जब तक प्रशासन विस्थापितों की आवाज नहीं सुनेगा, तब तक हर बाढ़ के बाद यह कहानी दोहराई जाती रहेगी – खेत गंगा में, घर गंगा में, और उम्मीदें भी गंगा में।

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