यह कहानी है बिहार के बेगूसराय जिले के उस लड़के की, जिसने सिर्फ 8 साल की उम्र में तीन मासूम बच्चों की हत्या करके न सिर्फ अपने गांव बल्कि पूरे देश को चौंका दिया। यह नाम है सुमित, जिसे दुनिया का सबसे कम उम्र का सीरियल किलर माना जाता है। उसकी कहानी न केवल रोंगटे खड़े कर देती है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या इतनी छोटी उम्र में कोई इंसान इस हद तक हिंसक हो सकता है?
सुमित का बचपन
सुमित का जन्म 1998 में बिहार के बेगूसराय जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था। उसका परिवार बेहद तंगी में जीता था। मां-बाप दोनों मजदूरी करते थे और परिवार की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब होती थी। माता-पिता के काम पर चले जाने के बाद घर की जिम्मेदारी अक्सर सुमित पर आ जाती थी।
बचपन के अन्य बच्चों की तरह सुमित भी बाहर खेलता, पेड़ों पर चढ़ता और आस-पास के बच्चों के साथ समय बिताता था। लेकिन उसके भीतर कुछ और ही चल रहा था, एक गंभीर मानसिक विकृति, जो धीरे-धीरे खतरनाक रूप ले रही थी। उसके व्यवहार में शुरू से ही हिंसक प्रवृत्तियों के संकेत मिलते थे, लेकिन किसी ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया।

पहली हत्या – चचेरे भाई की
साल 2006 की एक दोपहर, सुमित की मां राशन लेने बाजार गई हुई थी। घर पर सुमित, उसकी आठ महीने की बहन और चाचा का बेटा अकेले थे। बताया जाता है कि सुमित अक्सर इन दोनों बच्चों को मारता-पीटता था और उनके रोने पर उसे अजीब तरह की खुशी मिलती थी।
लेकिन उस दिन वह हद पार कर गया। उसने अपने चचेरे भाई का गला दबाकर उसे मौत के घाट उतार दिया और फिर उसका शव घास के नीचे छिपा दिया। जब मां वापस लौटी और बच्चे को नहीं पाया, तब सुमित से पूछताछ की गई। आश्चर्यजनक रूप से उसने सच स्वीकार कर लिया। उसके पिता ने उसे पीटा, लेकिन मामला पुलिस तक नहीं गया। परिवार ने इसे ‘पारिवारिक मामला’ मानकर दबा दिया और एक झूठी कहानी बनाकर बच्चे के गायब होने की बात कह दी।
दूसरी हत्या – अपनी ही बहन की
इस घटना के कुछ महीनों बाद सुमित ने दूसरी हत्या की। इस बार उसका शिकार बनी उसकी अपनी आठ महीने की बहन। यह घटना तब हुई जब परिवार के सभी सदस्य सो रहे थे। सुबह जब बच्ची मृत पाई गई, तो घरवालों को सच्चाई का अंदाजा हो गया, लेकिन उन्होंने फिर से चुप्पी साध ली।
परिवार ने इस हत्या को भी छुपा लिया और इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा मानकर बात को वहीं खत्म कर दिया। किसी ने नहीं सोचा कि एक आठ साल का बच्चा लगातार दो हत्याएं कर चुका है और उसे रोकना जरूरी है।
तीसरी हत्या – खुशबू और सच्चाई का खुलासा
साल 2007, जब सुमित ने तीसरी हत्या की, तब जाकर उसकी क्रूरता का परदा फटा। इस बार उसने पड़ोस की छह महीने की बच्ची खुशबू को अपना शिकार बनाया। खुशबू की मां ने बताया कि बच्ची स्कूल के पास खेल रही थी और अचानक लापता हो गई।
गांव वालों और पुलिस ने बच्ची की काफी तलाश की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। इसी दौरान पुलिस को सुमित पर शक हुआ। पूछताछ में उसने पहले बिस्किट मांगा और फिर पूरी सच्चाई उगल दी। उसने बताया कि उसने खुशबू का गला दबाकर हत्या कर दी थी और शव को ईंट से कुचलकर मिट्टी में दबा दिया था। उसने खुद पुलिस को उस जगह पर ले जाकर शव बरामद करवाया।
पुलिस और मनोवैज्ञानिक की प्रतिक्रिया
जब पुलिस ने सुमित से पूछताछ की, तो उसने न सिर्फ खुशबू की हत्या कबूली, बल्कि बताया कि उसने पहले अपनी बहन और चचेरे भाई की भी हत्या की थी। यह सुनकर पुलिस और ग्रामीणों के होश उड़ गए।
इस मामले में एक मनोवैज्ञानिक ने बताया कि सुमित को ‘कंडक्ट डिसऑर्डर’ नामक मानसिक विकार था, जिसमें व्यक्ति को दूसरों को तकलीफ पहुंचाकर मानसिक संतुष्टि मिलती है। इसे साइकोपैथिक टेंडेंसी भी कहा जाता है।
कानून और सुमित का भविष्य
भारतीय कानून के मुताबिक, कोई भी 18 साल से कम उम्र का व्यक्ति बाल अपराधी की श्रेणी में आता है और उसे जेल नहीं भेजा जा सकता। इसलिए सुमित को बाल सुधार गृह में रखा गया।
वह वहां 18 साल की उम्र तक रहा। लेकिन इसके बाद उसके जीवन के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। अब वह 24 साल का हो चुका है, लेकिन किसी को यह नहीं पता कि वह कहां है, क्या कर रहा है, और उसकी मानसिक स्थिति में कोई सुधार हुआ या नहीं।
सामाजिक और कानूनी प्रश्न
इस घटना ने न केवल समाज को झकझोर कर रख दिया, बल्कि यह भी सवाल खड़ा किया कि क्या हमारे देश में बाल मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है? सुमित जैसे बच्चों को यदि समय रहते मानसिक उपचार और मार्गदर्शन मिलता, तो शायद तीन मासूमों की जान बचाई जा सकती थी।
परिवार और समाज की चुप्पी ने सुमित को एक हत्यारा बना दिया। इस कहानी से हमें यह सबक भी मिलता है कि अगर किसी बच्चे के व्यवहार में असामान्यता दिखाई दे, तो उसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष:
सुमित की कहानी एक त्रासदी है—उसके लिए भी और उसके शिकार हुए मासूमों के लिए भी। यह कहानी बताती है कि मासूम चेहरों के पीछे भी छिपे हो सकते हैं डरावने राज, और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम समय रहते चेत जाएं, ताकि कोई और सुमित पैदा न हो।
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