बिहार के मधुबनी जिले से इंसानियत को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है, जहां जिला न्यायालय ने नाबालिग महादलित बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के दो दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है। यह सजा मधुबनी जिला न्यायाधीश प्रथम सैयद मोहम्मद फजलुल बारी की अदालत से सुनाई गई, जिन्होंने इस अपराध को “जघन्य में भी जघन्यतम” बताया।
यह मामला साल 2023 के जून महीने का है, जब जयनगर थाना क्षेत्र के एक गांव में एक महादलित समुदाय की बच्ची घर के पास खेलते-खेलते अचानक गायब हो गई थी। परिजनों ने काफी खोजबीन की, लेकिन बच्ची का कोई सुराग नहीं मिला। आखिरकार बच्ची के पिता ने जयनगर थाने में लिखित आवेदन देकर शिकायत दर्ज कराई।
पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए जांच शुरू की और अनुसंधान की कमान दारोगा गोपाल कृष्ण को सौंपी गई। जांच के दौरान पुलिस को कुछ सुराग मिले, जिसके आधार पर दो अभियुक्त—सुशील कुमार राय और ओम कुमार झा को गिरफ्तार किया गया।
तफ्तीश के दौरान अभियुक्तों ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि उन्होंने बच्ची को बहलाकर एक कमरे में ले जाया था, जहां दोनों ने मिलकर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और फिर गमछे से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि बच्ची का शव कमरे में टूटे हुए एस्बेस्टस के नीचे छुपाया गया था। अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने शव बरामद किया और घटनास्थल से हत्या में इस्तेमाल किया गया गमछा, आरोपियों के कपड़े समेत कई अन्य सबूत इकट्ठा किए।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 18 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। सभी गवाहों और फोरेंसिक सबूतों ने यह साबित कर दिया कि दोनों अभियुक्तों ने ही इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया था।
कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 366(A) (अपहरण), 376(D) (सामूहिक बलात्कार), 302/34 (हत्या), पॉक्सो एक्ट की धारा 4/6 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3/5 के तहत दोषियों को सजा सुनाई।
फैसले में क्या कहा कोर्ट ने:
न्यायाधीश सैयद मोहम्मद फजलुल बारी ने अपने फैसले में कहा कि यह अपराध केवल एक बच्ची के साथ अन्याय नहीं है, बल्कि समाज की आत्मा को झकझोर देने वाला है। उन्होंने कहा, “यह मामला जघन्य में भी जघन्यतम की श्रेणी में आता है। ऐसी घटनाएं समाज के लिए कलंक हैं और इसके लिए कठोरतम सजा ही उपयुक्त है।”
कोर्ट ने दोनों दोषियों को फांसी की सजा के साथ-साथ 1 लाख 20 हजार रुपये का आर्थिक जुर्माना भी सुनाया है। यह जुर्माना पीड़ित परिवार को मुआवजा स्वरूप दिया जाएगा।
अधिवक्ता का बयान:
पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता दिनेश कामत ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह फैसला समाज के उन लोगों के लिए चेतावनी है, जो इस प्रकार के अपराधों में शामिल होते हैं। अदालत ने न्याय की मिसाल कायम की है।”
न्याय की उम्मीद को मिला बल:
इस निर्णय से पीड़ित परिवार को जहां इंसाफ मिला है, वहीं समाज में यह संदेश भी गया है कि महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ जघन्य अपराध करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। अदालत के इस फैसले को व्यापक रूप से एक उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है, जो आने वाले समय में ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद करेगा।
इस पूरी घटना ने एक बार फिर देश की न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास मजबूत किया है और यह दिखाया है कि कानून के हाथ लंबे हैं—भले ही देर हो लेकिन न्याय जरूर होता है।
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