झारखंड में पुलिस हिरासत में साल 2018 से अबतक 10 लोगों की मौत हुई हैं, वहीं न्यायिक हिरासत के दौरान जेल में बंद 156 लोगों की जान गई है। लोकसभा में यूपी से सांसद जगदंबिका पाल के द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देशभर में पुलिस व न्यायिक हिरासत में मौत की जानकारी राज्यवार उपलब्ध करायी है।

केंद्र सरकार ने माना है कि पुलिस या न्यायिक हिरासत में मौत की घटनाओं में इजाफा नहीं हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, झारखंड में साल 2018-19 में पुलिस हिरासत में तीन, जबकि न्यायिक हिरासत में 64 मौतें हुई। वहीं 2019-20 में पुलिस हिरासत में 2 व न्यायिक हिरासत में 43, 2020-21 में पुलिस हिरासत में 5 व न्यायिक हिरासत में 49 लोगों की जान गई। वहीं इस दौरान देशभर में पुलिस हिरासत में 348 मौतें और न्यायिक हिरासत में कुल 5221 लोगों ने अपनी जान गंवाई है।

मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर पीड़ितों को मिली सहायता

लोकसभा में सवाल के जवाब में बताया गया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर पुलिस हिरासत में मारे गए छह लोगों के आश्रितों को 16 लाख रुपये मुआवजा राशि दी गई है। वहीं न्यायिक हिरासत में मारे गए 24 लोगों के परिजनों को 55 लाख 75 हजार की सहायता राशि दी गई है।

पुलिस हिरासत में मौत की होती है सीआईडी जांच

झारखंड में पुलिस हिरासत में मौत के सभी मामलों की जांच सीआइडी के द्वारा की जाती है। वर्तमान में पुलिस हिरासत में मौत के सभी मामलों की जांच सीआईडी कर भी रही है। इन मामलों में कुछ मामलों में पुलिस कर्मियों को दोषी पाते हुए विभागीय कार्रवाई का संचालन भी किया जा रहा है।

पुलिस हिरासत में मौत के लिहाज से पंजाब के साथ नौवें स्थान पर झारखंड

पुलिस हिरासत में साल 2021 में 151 लोगों की मौत हुई है। झारखंड में पांच मौत इस साल हुई है। पुलिस हिरासत में मौत के लिहाज से झारखंड व पंजाब संयुक्त रूप से नौवें स्थान पर हैं। आंकड़ों के लिहाज से सर्वाधिक 26 पुलिस हिरासत में मौत के मामले में महाराष्ट्र के हैं, वहीं गुजरात में 21, जबकि बिहार में पुलिस हिरासत में मौत के 18 मामले दर्ज किए गए हैं।

लोकसभा में प्रश्नोत्तरी

● देशभर में पुलिस हिरासत में 348 और न्यायिक हिरासत में 5221 लोगों की मौत

● केंद्र ने माना कि पुलिस या न्यायिक हिरासत में मौत की घटनाओं में वृद्धि नहीं हुई

केंद्र सरकार ने राज्यों को भेजा है निर्देश

पुलिस राज्य सरकारों के अधीन आती है। गृह मंत्रालय ने लिखा है कि राज्य में पुलिस अत्याचार की वारदातों पर लगाम लगे व आमलोगों के मानवाधिकारों की रक्षा हो इसके लिए केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी की है। साथ ही एनएचआरसी के द्वारा भी पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में मौत के मामलों की जांच के लिए गाइडलाइंस जारी किए गए हैं। इन गाइडलाइंस का पालन पुलिस को जांच के दौरान करना होता है। राज्य पुलिस के अधिकारियों को ऐसे मामलों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए वर्कशॉप का आयोजन भी किया जाता है।

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