हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है. इस दिन शनिदेव की पूजा-पाठ और उपाय करने से व्यक्ति को शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है. शनि देव को पूजा के समय सरसों का तेल और काले तिल चढ़ाए जाते हैं, जिससे वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. आमतौर कहा जाता है कि शनिदेव एक ऐसे देवता हैं जिनके प्रकोप से हर कोई कांपता है. और इसलिए विधि-विधान के साथ उनकी पूजा की जाती है. लेकिन क्या आप ये जानते हैं शनि देव भी कुछ देवी-देवताओं से डरते हैं. आइए जानें शनिवार के दिन किन 4 देवताओं को पूजने से शनि की वक्र दृष्टि से बचा जा सकता है. 

पीपल- पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव पिप्लाद से भय खाते हैं. इसलिए ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करेगा, उसे शनिदेव कुछ नहीं कहेंगे. मान्यता है कि शनिवार के दिन पीपल में सुबह  स्नान के बाद जल अर्पित करना चाहिए. वहीं, शाम के समय सरसों के तेल का दीपक भी जलाएं. 

हनुमान जी- धार्मिक मान्यता के अनुसार हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराया था. और तभी  शनिदेव ने हनुमान जी को वचन दिया था कि वे आने वाले समय में हनुमान जी पर अपनी दृष्टि नहीं डालेंगे. लेकिन शनि देव अपने इस वचन को भूल गए. और बजरंगबली को साढ़े साती का कष्ट देने पहुंच गए. 

शनि की इस हरकत पर हनुमान जी ने उन्हें अपने सिर पर बैठने की जगह दी. और जैसे ही शनिदेव सिर पर बैठे वैसे ही उन्हें एक भारी पर्वत अपने सिर पर रख लिया. उस पर्वत के भार के नीचे दबकर शनिदेव करहाने लगे और हनुमान जी से क्षमा मांगी. उस समय शनिदेव ने हनुमान जी को वचन दिया कि अब वे हनुमान जी के साथ-साथ उनके भक्तों को भी नहीं सताएंगे. इसलिए शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा से शनिदेव कुछ नहीं कहते. 

भगवान शिव- पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य के निवेदन पर भगवान शिव ने शनिदेव को सही राह दिखाने के लिए अपने गणों को शनिदेव से युद्ध के लिए भेजा था. शनिदेव ने उन सभी को परास्त कर दिया.तब भगवान शिव को ही शनिदेव से युद्ध करना पड़ा था. और इस दौरान भगवान शिव को अपनी तीसरी दृष्टि खोलकर शनिदेव और उनके लोगों को नष्ट करना पड़ा था. इस दौरान भगवान शिव ने शनिदेव को 19 सालों के लिए पीपल के पेड़ पर उल्टा लटका दिया था. इन 19 साल शनिदेव ने भोलेनाथ की अराधना ही की. इसलिए भगवान शिव के भक्तों पर भी शनिदेव अपनी वक्रदृष्टि नहीं डालते. 

पत्नी चित्ररथ-  कथा के अनुसार शनिदेव का विवाह चित्ररथ के साथ हुआ था. एक दिन कन्या की प्राप्ति की इच्छा लेकर चित्ररथ शनिदेव के पास पहुंची. तब वे श्री कृष्ण की भक्ति में लीन थे. बहुत देर तक इंतजार करने के लिए बाद जब वे थक गईं, तो उन्होंने क्रोधित होकर शनिदेव को श्राप दे दिया. तब से ही शनिदेव अपनी पत्नी चित्ररथ से भय खाते हैं.

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