नो मेंस लैंड आपने सुना ही होगा। अक्सर दो देशों की सीमाओं पर ऐसी जगह होती है। लेकिन, क्या आपको पता है कि ऐसी एक जगह बिहार में है, वह भी पटना के बिल्कुल पास। यह आधिकारिक रूप तो नो मेंस लैंड नहीं है, लेकिन यहां के हालात ठीक ऐसे ही हैं। यहां बिहार सरकार की नहीं किसी और की हुकूमत चलती है। पुलिस यहां कम पहुंचती है, लेकिन यहां निजी सेनाओं की समांतर सरकार चलती है। हर रोज लाखों रुपए का कारोबार होता है।
बिहटा-मनेर मौजा के दियारा क्षेत्र में सोन नदी के बीच उभर आए टापू को बालू माफिया नो मेंस लैंड कहते हैं। बालू घाटों पर अवैध कब्जा करने को लेकर लंबे समय से खूनी संघर्ष जारी है। पूर्व में भी यहां बालू माफिया के बीच फायरिंग भी हो चुकी है, जिसमें कई लाशें बिछ गईं। यहां हथियार के बल पर बालू लोड का खेल लंबे अरसे से चल रहा है और यहां से प्रतिदिन लाखों रुपये का अवैध कारोबार होता है।
1987 की बाढ़ के बाद बन गया टापू
स्थानीय लोगों के मुताबिक 1987 में बाढ़ के बाद बदले हालात में यहां टापू जैसा क्षेत्र बन गया था। उस इलाके में बालू का उत्खनन तो पहले से हो रहा है। करीब दस वर्षों से यहां से बड़े पैमाने पर बालू की खोदाई हो रही है। सड़क मार्ग से बालू लेकर जाने वाली गाडिय़ों का चालान कटवाना पड़ता है, लेकिन नदी मार्ग से जाने वाली नावें बंदूक की बदौलत चलती हैं। इनको किसी चालान की आवश्यकता नहीं होती। महुई महाल से बालू नाव पर लाद कर माफिया छपरा, यूपी आदि में बालू अच्छे दाम में बेचते हैं।
राजस्व के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान
नाविकों को सिर्फ पोकलेन मशीन से लदाई एवं रंगदारी में चंद रुपये देने पड़ते हैं और बालू हजारों में बिकता है। प्रशासन की लाख कोशिशों के बावजूद बालू का अवैध खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। खनन माफिया पुलिस की आंख में धूल झोंक कर बालू का अवैध कारोबार कर रहे हैं। कई बार बालू माफिया और पुलिस-प्रशासन की साठगांठ भी उजागर हो चुकी है। इससे राजस्व के साथ पर्यावरण को भी गंभीर क्षति पहुंच रही है।
लंबे समय से सीमा का फायदा उठाते रहे बालू माफिया
सोन नद के दियारे इलाके मे बिहटा प्रखंड के अमानबाद मौजे के 1/197 खेसरा में स्थित करीब तीन सौ तेईस एकड़ भूमि का क्षेत्र बना है। इसके किनारे का इलाका पटना व भोजपुर जिलों को जोड़ता है। दो जिलों की सीमा होने के कारण बालू माफिया इसका फायदा लंबे समय से उठा रहे हैं। दोनों जिलों की पुलिस एक दूसरे की सीमा बताकर वहां जाने इन्कार करती रहती है। इसका भरपूर लाभ बालू माफिया को मिलता है।
फौजी और सिपाही गैंग के बीच कई बार हुई गैंगवार
महुली और अमनाबाद के समीप सोन नद में हमेशा पानी की बढ़ोतरी होने के बाद गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती है। बालू माफिया रास्ता रोककर वसूली करते हैं। सोन में पानी बढऩे के बाद छपरा, भोजपुर, पटना चारों तरफ से नावों का आवागमन शुरू होता है। सूत्रों की मानें तो प्रतिदिन हजारों नावों पर बालू की तस्करी होती है। प्रत्येक नाव पर प्रति सीएफटी 500 रुपये की दर से बतौर रंगदारी या सुविधा शुल्क वसूला जाता है। इसी वसूली के लिए पूर्व में फौजी और सिपाही गैंग के बीच गैंगवार में दोनों पक्षों के कई सदस्यों की जान जा चुकी है।