भागलपुर के पिरपैंती में जमीन अधिग्रहण को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। जानकारी के मुताबिक, लगभग 1,050 एकड़ जमीन 35 वर्षों के लिए अदानी समूह को पावर प्लांट परियोजना के नाम पर सालाना महज ₹1 के लीज पर दिए जाने की खबर सामने आई है। इस खुलासे ने स्थानीय ग्रामीणों और समाजसेवियों के बीच गहरी नाराज़गी पैदा कर दी है।
शुक्रवार को स्थानीय समाजसेवी दीपांकर भट्टाचार्य पिरपैंती पहुंचे और इस मुद्दे पर ग्रामीणों से मुलाकात की। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि इतनी बड़ी मात्रा में जमीन लीज पर देना और लोगों को बिना विश्वास में लिए वहां से हटाना न केवल अनुचित है बल्कि किसानों और गरीब परिवारों के भविष्य से खिलवाड़ भी है।
गांव के कई परिवारों को भूमि खाली करने के नोटिस दिए जा चुके हैं, लेकिन स्थानीय लोगों ने साफ कह दिया है कि वे अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। उनका कहना है कि यह जमीन ही उनकी आजीविका का साधन है और पीढ़ियों से वे इसी पर निर्भर हैं। ग्रामीणों ने स्पष्ट शब्दों में कहा— *“हम जमीन नहीं छोड़ेंगे, ना ही यहाँ से हटेंगे।”*
इस परियोजना को लेकर पर्यावरणीय चिंता भी गंभीर है। ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर पावर प्लांट का निर्माण होता है, तो लाखों पेड़ों की बलि देनी पड़ेगी। इससे न सिर्फ बग़ीचे और खेती का इलाका खत्म होगा बल्कि पूरा क्षेत्र अपनी हरियाली और प्राकृतिक संपदा से वंचित हो जाएगा।
समाजसेवी दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा—
*”विकास का वादा तभी स्वीकार्य है जब उसकी असलियत और असर जमीन पर रहने वालों को स्पष्ट रूप से बताया जाए। लोगों को भरोसे में लिए बिना जमीन छीनी जाएगी तो यह अन्याय होगा।”*
उन्होंने साफ कहा कि वे गरीब और भूमिहीन परिवारों के साथ इस लड़ाई में खड़े हैं और उनकी आवाज़ को हर मंच पर उठाएंगे।
स्थानीय ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि यदि उनकी मांगों की अनदेखी की गई, तो वे व्यापक आंदोलन की तैयारी करेंगे। कई संगठनों ने भी इस मुद्दे पर ग्रामीणों के समर्थन की घोषणा की है।
वहीं, अब तक विकास प्राधिकरण या अदानी समूह की ओर से इस विवादास्पद लीज अनुबंध पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनके सवालों और आशंकाओं का समाधान नहीं होता, वे किसी भी हालत में अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं होंगे।
पिरपैंती की यह जंग केवल जमीन बचाने की लड़ाई नहीं, बल्कि अस्तित्व और पर्यावरण संरक्षण का सवाल बन गई है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन और कंपनी पक्ष इस विवाद को कैसे सुलझाते हैं और ग्रामीणों का संघर्ष कितनी दूर तक जाता है।
