रंगरा प्रखंड के चापर गांव का वीर सपूत अंकित यादव उर्फ धीरज यादव जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त हो गया। 27 वर्षीय अंकित यादव, गांव के लक्ष्मी यादव और सविता देवी के सबसे छोटे पुत्र थे। बचपन से ही उनका सपना था कि वह भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करें। कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने सेना में भर्ती होकर अपने इस सपने को साकार किया।

परिवार के अनुसार, मंगलवार की रात उन्होंने ड्यूटी के दौरान खाना खाया और फिर पेट्रोलिंग पर निकल पड़े। सुबह करीब तीन बजे, उरी सेक्टर के टिका पोस्ट के पास आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश की। इस दौरान सेना के जवानों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई। जवाबी कार्रवाई में आतंकवादियों ने गोलियां चलाईं, जिनमें से एक गोली अंकित को लगी। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने आतंकवादियों की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम कर दिया और मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।

अंकित यादव अपने पीछे चार वर्षीय पुत्र किनु बाबू और दो वर्षीय पुत्री को छोड़ गए हैं। तीन भाइयों में वे सबसे छोटे थे। बड़े भाई मुकेश यादव भारतीय सेना से जेसीओ पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जबकि दूसरे भाई मिथिलेश यादव आरपीएफ में बख्तियारपुर में पदस्थापित हैं। तीसरे भाई भी आर्मी से रिटायर हो चुके हैं। शहादत की खबर फिलहाल मां और पिता से छिपाकर रखी गई है ताकि उनका स्वास्थ्य प्रभावित न हो।

गांव के बुजुर्ग सीपक यादव ने भावुक होकर बताया कि अंकित न केवल एक बहादुर सैनिक थे, बल्कि एक सरल, विनम्र और मिलनसार इंसान भी थे। वे हमेशा गांव और अपने दोस्तों की मदद के लिए तैयार रहते थे। उनकी शहादत से जहां पूरा गांव शोक में है, वहीं नवगछिया अनुमंडल और भागलपुर जिला गर्व महसूस कर रहा है कि उनके क्षेत्र का बेटा देश के लिए बलिदान हुआ।

वर्तमान में चापर गांव पूरी तरह बाढ़ की चपेट में है। गांव जाने वाली सड़कों पर कहीं कमर तक तो कहीं छाती भर पानी भरा हुआ है। ऐसे में शहीद के पार्थिव शरीर को गांव लाने और अंतिम संस्कार की तैयारी में काफी कठिनाई होगी। प्रशासन और सेना के जवान इस दिशा में विशेष प्रयास कर रहे हैं ताकि पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो सके।

अंकित यादव की शहादत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि देश की सीमाओं की रक्षा के लिए हमारे जवान हर चुनौती का सामना करने को तैयार रहते हैं, चाहे वह दुश्मन की गोलियां हों या कठिन भौगोलिक परिस्थितियां। उनका बलिदान हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

गांव में अब केवल मातम नहीं, बल्कि गर्व की भावना भी है। लोग कह रहे हैं कि अंकित ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की और अमर हो गए। उनका नाम हमेशा शहीदों की सूची में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज रहेगा।

अंकित यादव को आने वाली पीढ़ियां एक ऐसे सच्चे वीर के रूप में याद करेंगी, जिसने अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखा और अंतिम सांस तक मातृभूमि की रक्षा की।

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