नगर पंचायत परबत्ता प्रखंड के कन्हैयाचक गांव में मां काली की पूजा का इतिहास 1875 ई. से जुड़ा हुआ है। यह पूजा आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ की जाती है, जैसे आरंभिक दिनों में होती थी। मां काली मंदिर की महिमा अपार है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां मां की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। दूर-दराज़ से भक्तजन मनतें मांगने और पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं। स्थानीय लोग मानते हैं कि मां की कृपा से गांव में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।

इस वर्ष भी कन्हैयाचक में मां काली की पूजा धूमधाम से मनाई जाएगी। 20 अक्टूबर को मां काली की प्रतिमा पिंडी पर विराजमान होगी, और उसी दिन “विधवा” नाटक का मंचन किया जाएगा। 21 अक्टूबर को विशेष पूजन, महाआरती और “परशुराम” नाटक का आयोजन होगा। वहीं 22 अक्टूबर को परंपरागत आतिशबाजी के बीच प्रतिमा का भव्य विसर्जन किया जाएगा। यह तीन दिवसीय आयोजन गांव के सांस्कृतिक गौरव और एकता का प्रतीक बन गया है।

मां काली मंदिर का निर्माण 18 अप्रैल 2022 को भूमि पूजन के साथ शुरू हुआ था और लगभग डेढ़ साल के अथक परिश्रम के बाद 5 नवंबर 2023 को पूरा हुआ। इस मंदिर के निर्माण में कुल 1 करोड़ 55 लाख रुपये की लागत आई। इसकी भव्यता और आकर्षण आज लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गई है। मंदिर निर्माण में राजस्थान और अन्य राज्यों से लाए गए पत्थरों का उपयोग किया गया, जिन पर बंगाल के कारीगरों ने बारीक नक्काशी की है। यह कला मंदिर की दीवारों और गुंबदों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

कोलकाता के वास्तुकला विशेषज्ञों और इंजीनियरों द्वारा तैयार किए गए नक्शे के अनुसार, मंदिर में तीन छोटे और एक बड़ा गुंबद बनाया गया है। लगभग 80 फीट ऊंचे इस मंदिर का गर्भगृह विशेष रूप से तैयार किया गया है, जहां प्राकृतिक रोशनी और वायु का समुचित प्रबंध किया गया है। मंदिर के निर्माण में स्थानीय ग्रामीणों और समिति के सदस्यों का योगदान सराहनीय रहा, जिन्होंने आर्थिक और शारीरिक दोनों रूप से सहयोग दिया।

कन्हैयाचक में मां काली की पूजा के साथ नाट्यकला की परंपरा भी उतनी ही पुरानी है। 1938 में स्थापित नाट्य कला परिषद ने इस गांव को सांस्कृतिक पहचान दिलाई। भुवनेश्वर मिश्र, जगदंबा गुरुजी, तारणी शर्मा, सहदेव शर्मा और गोखले चौधरी जैसे प्रसिद्ध नाट्य निर्देशकों के निर्देशन में कई यादगार नाटक मंचित हुए, जिन्होंने स्थानीय रंगमंच को एक नई दिशा दी।

धार्मिक आस्था के साथ-साथ कन्हैयाचक की यह परंपरा सामाजिक एकता और सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक है। हर वर्ष पूजा के अवसर पर हजारों भक्त एकत्रित होकर गांव की पहचान को और प्रखर बनाते हैं। मां काली की कृपा से यहां के लोग एकजुट रहते हैं और गांव की समृद्धि निरंतर बढ़ती जा रही है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि कला, संस्कृति और लोकसंस्कृति के संरक्षण का जीवंत उदाहरण भी है।

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