भागलपुर । तीन साल भारत भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद 1890 में भागलपुर आये थे और वह यहां सात दिनों तक रुके थे। तब हनुमानघाट पर ध्यान और चिंतन की गंगा भी बही थी। स्वामीजी जब तक भागलपुर में रहे, शाम में इस मनोरम तट पर आते रहे। विवेकानंद केंद्र द्वारा प्रकाशित पुस्तक वांड्रिंग मोंक में स्वामीजी की भागलपुर यात्रा का उल्लेख है।

टीएनबी कॉलेज के इतिहास के सहायक प्राध्यापक डॉ. रविशंकर चौधरी ने बताया कि स्वामी विवेकानंद अगस्त 1890 में गुरु भाई स्वामी अखंडानंद के साथ भागलपुर आए थे।

उनकी पहली मुलाकात नित्यानंद सिंह से हुई थी। बरारी में अंग्रेजी के शिक्षक मनमथनाथ चौधरी के घर गए थे। उस समय वह अंग्रेजी की किताब पढ़ रहे थे। उनके साथ वह दो घंटे तक अंग्रेजी में ही बात करते रह गये।

वह अगले सात दिनों तक मनमथ बाबू के घर पर आध्यात्मिक चर्चा भी किये। 11 सितंबर 1893 को शिकागो में हुए धर्म महासम्मेलन की खबर जब मनमथनाथ ने अखबार में पढ़ी तो वे अगाध श्रद्धा से भर गए।

वे आजन्म इस बात से दुखी थे कि जिस साधु के पहले आगमन में वे स्वागत नहीं कर सके थे वे वही विवेकानंद थे जो विश्व के मन-प्राण में बस चुके थे।

विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के बिहार और झारखंड के प्रांत संपर्क प्रमुख डॉ विजय कुमार वर्मा बताते हैं कि गंगा तट पर स्वामी जी जहां ध्यान लगाते थे, आज वहां विवेकानंद के नाम से वेदी बनी हुई है। यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित है।

गंगा तट पर शाम को जाते थे चिंतन व ध्यान करने

विवेकानंद जबतक यहां रहे वे भजन में भाग लेते थे। शाम के समय गंगा के तट पर चिंतन-ध्यान करने जाया करते थे। सैंडिस के पूर्वी छोर पर बने विवेकानंद मेमोरियल के पास सात दिनों तक प्रवचन दिये थे।

जहां उनकी याद आज भी सिमटी है। गंगा तट पर स्वामी जी जहां ध्यान लगाते थे, आज वहां विवेकानंद के नाम से वेदी बनी हुई है।

यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित है। हर साल 12 जनवरी को जयंती व चार जुलाई को पुण्यतिथि मनाने के लिए लोग यहां आते हैं।

विवेकानंद के बाद उनके साथ भागलपुर आए स्वामी अखंडानन्द ने भागलपुर से संबंध कायम रखा।

सन 1913 की प्राकृतिक आपदा के वक्त ये स्वयं आए और भागलपुर तथा मुंगेर में कई राहत शिविर लगवाए

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