सहरसा के सदर अस्पताल में एक बार फिर गंभीर अनियमितता और लापरवाही के आरोप सामने आए हैं। बीती रात डिलीवरी के लिए अस्पताल पहुंची एक महिला के परिवार ने आरोप लगाया कि प्रसव प्रक्रिया के दौरान अस्पताल के कुछ स्टाफ ने उनसे खुलेआम घूस की मांग की। परिजनों के अनुसार, डॉक्टर और उपस्थित कर्मियों ने उनसे कहा कि *“बच्चा उल्टा फंसा है, स्थिति जटिल है, बिना पैसे डिलीवरी कर पाना मुश्किल होगा।”* परिवार का कहना है कि इस कथित दबाव के बीच 5000 रुपये की मांग की गई।
गरीब परिवार इतना बड़ा भुगतान करने में सक्षम नहीं था, लेकिन मजबूरी में उन्होंने आपस में पैसा इकट्ठा कर लगभग 2400 रुपये स्टाफ को देने का दावा किया। परिजनों का आरोप है कि पैसे देने के बाद भी न तो तत्काल चिकित्सा व्यवस्था सुनिश्चित की गई और न ही प्रसव प्रक्रिया में आवश्यक तत्परता दिखाई गई। इसी देरी और लापरवाही के चलते नवजात शिशु की स्थिति बिगड़ती चली गई और अंततः उसकी मृत्यु हो गई।
जैसे ही बच्चे की मौत की सूचना परिवार को मिली, अस्पताल परिसर में आक्रोश फैल गया। परिजनों ने डॉक्टर और मौजूद स्टाफ पर गंभीर लापरवाही, भ्रष्टाचार और मानवता विहीन व्यवहार के आरोप लगाए। उनका कहना है कि यदि समय पर उचित इलाज और ईमानदार चिकित्सा सेवा मिली होती, तो शायद नवजात की जान बचाई जा सकती थी।
मामले को लेकर आज परिवार सिविल सर्जन (सीएस) कार्यालय में लिखित शिकायत सौंपने की तैयारी में है। परिजन मांग कर रहे हैं कि जिस स्टाफ ने कथित रूप से घूस ली और जिस लापरवाही के कारण बच्चे की मृत्यु हुई, उन सभी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। परिवार का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है; सदर अस्पताल में समय-समय पर ऐसी शिकायतें सामने आती रही हैं, पर अक्सर मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।
हालांकि, अभी तक अस्पताल प्रशासन की ओर से इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। न ही यह पुष्टि हुई है कि पैसा वास्तव में लिया गया था या नवजात की मौत किसी चिकित्सकीय जटिलता का परिणाम थी। ऐसे मामलों में निष्पक्ष जांच अत्यंत आवश्यक है ताकि सही स्थिति सामने आ सके और यदि किसी प्रकार की लापरवाही पाई जाती है, तो संबंधित कर्मियों पर सख्त कार्रवाई की जा सके।
अब सभी की नजर प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी है। क्या दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा, या यह मामला भी पहले की तरह अनदेखा कर दिया जाएगा—इस पर आने वाले दिनों में स्थिति स्पष्ट होगी। फिलहाल, इस घटना ने एक बार फिर सरकारी अस्पतालों में व्याप्त अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य सेवाओं की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
