बिहार के वैशाली की दोनों पैरों से दिव्यांग छात्रा एक किलोमीटर रेंगकर स्कूल पढ़ने जाती है। वो अपनी लगन और हौसले की बदौलत कक्षा एक से नौवीं में आ गई, लेकिन उदासीन अधिकारी आजतक बिहार की बेटी सुमित्रा को एक अदद ट्राई साइकिल तक मुहैया नहीं करवा पाए। बिहार के वैशाली में दोनों पैरों दिव्यांग छात्रा सुमित्रा एक किलोमीटिर रेंगकर स्कूल जाने को मजबूर है। वो आगे पढ़ना चाहती है। लेकिन सरकारी अधिकारियों की उदासीनता की वजह से उसे एक अदद ट्राई साइकिल तक नहीं मिल पाई है

एक किलोमीटर रेंगर पढ़ने जाने के मजबूर है सुमित्रा

देसरी प्रखंड के रसूलपुर हबीब पंचायत की एक 14 वर्षीय अनुसूचित जाती की छात्रा घर से एक किलोमीटर रेंगकर विद्यालय जाती है। पढ़ाई के प्रति उसके इस जज्बे को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। छात्रा के माता-पिता ने विद्यालय के प्रधानाध्यापक और स्थानीय मुखिया से लेकर प्रखंड और जिला तक संबंधित अधिकारियों को छात्रा के लिए एक ट्राई साइकिल और सहायता राशि के लिए आवेदन दिया फिर भी अधिकारियों के उदासीन रवैये के कारण आज तक दिव्यांग छात्रा को सरकारी सहायता तो दूर एक ट्राई साइकिल तक नहीं मिल सकी है।

सुमित्रा को यकीन है वो एक दिन कामयाब होगी

यह अधिकारियों की कुव्यवस्था की पोल खोलती है। छात्रा की अपनी पढ़ाई के प्रति ऐसी लगन है कि कड़ी धूप हो या बरसात घर से एक किलोमीटर दूर ईंट सोलिंग, पक्की और कच्ची सड़क पर रेंगकर विद्यालय आती-जाती है। इसकी साहस देखकर सभी चकित हैं। संवाद संकलन के दौरान रेंगकर विद्यालय जाती दिखी दिव्यांग छात्रा ने बताया कि मेरा नाम सुमित्रा कुमारी है। पिता का नाम सुरेश पासवान है। घर चांदपुरा गांव में है जहां से रोज भटौलिया उच्च विद्यालय पढ़ने जाती हूं। वर्ग नवम की छात्रा ने बताया कि वह वर्ग एक से आठ तक बड़ी परेशानी से पढ़ी है। अब तो घर से काफी दूर उच्च विद्यालय में पढ़ने जाती हूं। दोनों पैरों से चलने-फिरने में असमर्थ छात्रा अपने हौसले को कायम रखते हुए कहती है कि सरकारी सहायता कुछ भी नहीं मिली है, तब भी वह आगे की पढ़ाई जारी रखेगी। उसे विश्वास है कि इस परिश्रम से एक दिन जरूर कामयाबी मिलेगी।

बीते दिनों बिहार के जमुई से भी एक ऐसी ही तस्वीर सामने आई थी। जहां 10 साल की बच्ची सीमा एक पैर पर कूदकर एक किलीमीटिर दूर स्कूल पढ़ने जाती थी। सड़क हादसे में सीमा को अपना एक पैर गंवाना पड़ा था, लेकिन सीमा का जज्बा पढ़ाई को लेकर कभी कम नहीं हुआ। मीडिया में यह खबर आने के बाद सीमा की कई लोगों ने मदद की और वो आज कृत्रिम पैर की जरिए आसानी से चलने फिरने लगी है। वैशाली की सुमित्रा सरकारी मदद की आस में है, लेकिन परिजनों का कहना है कि अधिकारी कोई ध्यान नहीं देते हैं।

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