सावन जैसे पवित्र महीने में केंद्रीय मंत्री और जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह द्वारा आयोजित मटन पार्टी पर सियासत गर्म हो गई है। लखीसराय के सूर्यगढ़ा में आयोजित इस भोज में खुद ललन सिंह ने माथे पर तिलक लगाए कार्यकर्ताओं की थाली में मटन परोसा। यही नहीं, भोज के दौरान उन्होंने मंच से कहा कि “भोजन बढ़िया है, सावन का भी इंतजाम है और जो सावन नहीं मना रहे हैं, उनके लिए भी व्यवस्था की गई है।”
इस बयान और तस्वीरों के सामने आते ही सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक ललन सिंह पर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस नेता बीवी श्रीनिवास ने इस मुद्दे पर जेडीयू और बीजेपी को घेरा। उन्होंने एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा—”सावन के महीने में मोदी-नीतीश की मटन पार्टी, धर्म के ठेकेदारों डूब मरो।” हालांकि आरजेडी की ओर से इस मुद्दे पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन उनके समर्थक सोशल मीडिया पर एनडीए को घेरते नजर आ रहे हैं।

गौरतलब है कि ठीक इसी तरह का विवाद 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी हुआ था, जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और वीआईपी पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी की मछली-रोटी खाते तस्वीर वायरल हुई थी। उस वक्त जेडीयू और बीजेपी ने उन्हें सनातन विरोधी तक कह दिया था, क्योंकि वह चैत्र नवरात्र का समय था। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक चुनावी जनसभा में इस मुद्दे पर तंज कसा था।
तेजस्वी यादव ने तब सफाई दी थी कि वह वीडियो नवरात्र से एक दिन पहले का था, लेकिन शेयर बाद में किया गया। उस मुद्दे को लेकर काफी सियासी बवाल मचा था, और अब ललन सिंह पर भी वैसी ही प्रतिक्रिया सामने आ रही है।
70 वर्षीय ललन सिंह मोदी सरकार में मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी और पंचायती राज मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे हैं। वे बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से सांसद हैं और नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते हैं। पूर्व में वह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
ललन सिंह की दलील है कि भोज में शाकाहारी विकल्प भी था, और सभी की आस्था का ध्यान रखा गया। मगर सवाल यह उठ रहा है कि अगर सावन में मटन पार्टी देना ठीक है, तो फिर तेजस्वी यादव को चैत्र नवरात्र में मछली खाने पर “सनातन विरोधी” क्यों कहा गया?
अब जनता पूछ रही है कि क्या धार्मिक भावनाओं और परंपराओं को लेकर एनडीए के मापदंड बदलते रहते हैं? और क्या यह दोहरी राजनीतिक चाल नहीं है? फिलहाल, सावन में मटन पार्टी ने बिहार की राजनीति में एक बार फिर आस्था बनाम अवसरवाद की बहस को तेज कर दिया है।
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