भागलपुर जिले के कहलगांव प्रखंड के पैठनपुरा वार्ड नंबर–1 निवासी 25 वर्षीय रितेश कुमार साह ने बिना गियर वाली सामान्य साइकिल से माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचकर इतिहास रच दिया। 3 दिसंबर को रितेश ने एवरेस्ट बेस कैंप (5364 मीटर) पर भारत का तिरंगा लहराया, लेकिन अब उनकी सुरक्षित घर वापसी परिवार के लिए चिंता का विषय बन गई है।
रितेश सीमित संसाधनों के साथ 23 अक्टूबर की मध्यरात्रि को दिल्ली के अशोकनगर से अपनी यात्रा पर निकले थे। न महंगी साइकिल, न बड़ा बजट—सिर्फ हिम्मत, आत्मविश्वास और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा। इस कठिन यात्रा में उन्हें पहाड़ों की खड़ी चढ़ाई, कड़ाके की ठंड, ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और खराब मौसम जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई जगहों पर साइकिल चलाने का रास्ता नहीं था, तो करीब 1300 किलोमीटर तक साइकिल कंधे पर उठाकर चलना पड़ा।
यात्रा के दौरान रितेश के हाथ-पैर और शरीर में गंभीर छाले पड़ गए। उन्होंने बताया कि उनके पास पर्वतारोहण के अनुरूप कपड़े तक नहीं थे, मात्र 250 रुपये का एक जैकेट पहनकर ही उन्होंने यह सफर तय किया। बेस कैंप पहुंचने के बाद दो दिन आराम के दौरान उन्होंने अपने पिता गोपी साह को फोन कर स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति की जानकारी दी और सरकारी मदद मिलने पर सुरक्षित लौटने की बात कही।
इसके बाद पिता गोपी साह और बड़े भाई प्रिंस कुमार साह ने भागलपुर के सांसद अजय मंडल और जिलाधिकारी डॉ. नवल किशोर चौधरी को 5 दिसंबर को आवेदन सौंपा, लेकिन 9 दिन बीतने के बाद भी कोई सहायता नहीं मिली। आर्थिक तंगी के चलते रितेश अब धीरे-धीरे स्वयं लौट रहे हैं। रास्ते में कभी ट्यूशन पढ़ाकर, कभी अन्य पर्वतारोहियों की मदद कर भोजन और आगे की यात्रा का इंतजाम कर रहे हैं।
रितेश कहते हैं कि उन्होंने लक्ष्य पूरा कर लिया है और स्वाभिमान के साथ अपने संसाधनों से आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार से अपेक्षा है कि वह अपने कर्तव्य का निर्वहन करे। नेपाल सरकार ने उनकी उपलब्धि पर सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया है। अब परिवार और स्थानीय लोग चाहते हैं कि इस साहसी युवक की सुरक्षित घर वापसी के लिए प्रशासन और समाज आगे आए।
