बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता दल (यूनाइटेड) में बड़ी हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने बगावती तेवर दिखाने वाले 11 नेताओं को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। टिकट न मिलने से नाराज इन नेताओं ने निर्दलीय या अन्य दलों के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरने का फैसला किया था, जिसके बाद पार्टी ने उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की है।
निष्कासित नेताओं में कई बड़े नाम शामिल हैं — जमालपुर (मुंगेर) के पूर्व मंत्री **शैलेश कुमार**, बरबीघा (शेखपुरा) के मौजूदा विधायक **सुदर्शन कुमार**, बड़हरिया (सिवान) के पूर्व विधायक **श्याम बहादुर सिंह**, बरहरा (भोजपुर) के पूर्व विधायक **रणविजय सिंह**, और चकाई (जमुई) के 2020 के उम्मीदवार **संजय प्रसाद**। इनके अलावा साहेबपुर कमाल (बेगूसराय) के **अमर कुमार सिंह**, महुआ (वैशाली) की **आसमा परवीन**, नवीनगर (औरंगाबाद) के **लव कुमार**, कदवा (कटिहार) की **आशा सुमन**, मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) के **दिव्यांशु भारद्वाज** और जीरा देई (सिवान) के **विवेक शुक्ला** भी बाहर कर दिए गए हैं।
नीतीश कुमार के निर्देश पर जारी इस कार्रवाई को पार्टी की “अनुशासन और एकजुटता” की मिसाल बताया जा रहा है। जदयू के प्रदेश महासचिव चंदन कुमार सिंह के हस्ताक्षर से निष्कासन पत्र जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि पार्टी लाइन से भटकने वालों के लिए कोई जगह नहीं है।
बिहार में अब चुनावी माहौल अपने चरम पर है। 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान होगा, जबकि 11 नवंबर को 20 जिलों की 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे।
जदयू के बागी उम्मीदवारों की मौजूदगी कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय बना सकती है, जिससे नीतीश कुमार की रणनीति पर भी असर पड़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन नेताओं का स्थानीय प्रभाव जदयू के आधिकारिक प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन पार्टी को भरोसा है कि “टीम नीतीश” एकजुटता और संगठन के दम पर इस चुनौती से पार पा लेगी।
बिहार में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। जदयू की इस सख्त कार्रवाई ने एक ओर जहां अनुशासन का संदेश दिया है, वहीं दूसरी ओर बगावत के सुर को और भी दिलचस्प बना दिया है।
