शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि मां ममता की सागर हैं। उनकी महिमा निराली है। अपने भक्तों का उद्धार करती हैं और दुष्टों का संहार करती हैं। शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन श्रद्धा भाव से मां चंद्रघंटा की उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है।
मां चंद्रघंटा की सवारी शेर है। दस हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं। माथे पर अर्ध चंद्र ही इनकी पहचान है। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है। माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती हैं। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से मन को शांति प्राप्त होती है। मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप की अराधना करने से परम शक्ति का अनुभव होता है। मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा में दूध का प्रयोग करना परम कल्याणकारी होता है।
मां चंद्रघंटा की पूजा कोलेकर इन बातों का ध्यान रखना चाहिए कि सुबह सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर माता का ध्यान करें। मां दुर्गा को फूल, अक्षत, रोली और पूजा की सामग्री अर्पित करें। माता की आरती उतारें। आरती के दौरान शंख और घंटा बजाएं, मान्यता है कि ऐसा करने से घर की नेगेटिविटी दूर होती है।अब माता रानी को भोग लगाएं। आप मां चंद्रघंटा की कथा या दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं। माता की पूजा के लिए आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं – पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।
आपको बताते चलें कि, नवरात्रि का तीसरा दिन साहस और आत्मविश्वास पाने का है। इस दिन हर तरह के भय से मुक्ति भी मिल सकती है। इस दिन माता चन्द्रघण्टा की पूजा की जाती है। जिन लोगों की कुंडली में मंगल कमजोर होता है, उनके लिए माता चंद्रघंटा की पूजा विशेष होती है। नवरात्रि के तीसरे दिन विशेष साधना से व्यक्ति निर्भय हो जाता है।