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भागलपुर, बिहार — मंगलवार को भागलपुर के कचहरी चौक पर झुग्गी झोपड़ी संघर्ष समिति के बैनर तले सैकड़ों लोगों ने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया। प्रदर्शन का कारण रेलवे द्वारा जारी किया गया एक नोटिस है, जिसमें झुग्गीवासियों को सात दिनों के भीतर रेलवे की जमीन खाली करने का आदेश दिया गया है। प्रदर्शनकारियों ने इसे अन्यायपूर्ण करार दिया है और सरकार से पुनर्वास की उचित व्यवस्था की मांग की है।

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धरना स्थल पर भारी संख्या में पुरुषों और महिलाओं की मौजूदगी रही। प्रदर्शनकारियों ने बताया कि वे पिछले लगभग 50 वर्षों से इस ज़मीन पर रह रहे हैं। उनके अनुसार, यह जमीन भले ही रेलवे की हो, लेकिन इतने वर्षों से यहां रहकर उन्होंने इसे अपने घर के रूप में स्वीकार कर लिया है। अब अचानक उन्हें हटाने का आदेश दिया जाना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि उनके जीवन के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।

धरना दे रहे लोगों का कहना है कि उनका जीवन, रोज़गार, बच्चों की पढ़ाई और सामाजिक संबंध इसी क्षेत्र में टिके हुए हैं। अगर उन्हें बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के यहां से हटाया जाता है तो उनका संपूर्ण जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। उन्होंने साफ कहा कि जब तक सरकार या रेलवे प्रशासन उन्हें वैकल्पिक ज़मीन अथवा पुनर्वास की पुख्ता व्यवस्था नहीं करता, तब तक उन्हें हटाना संविधान और मानवता दोनों के खिलाफ है।

प्रदर्शनकारियों की ओर से कहा गया कि वे कोई अतिक्रमणकारी नहीं हैं, बल्कि मजबूरी में उन्होंने वर्षों पहले यह आशियाना बनाया था। अब जब सरकार और रेलवे विकास कार्य करना चाहते हैं, तो यह उनका भी कर्तव्य बनता है कि वहां निवास कर रहे गरीब परिवारों के भविष्य की जिम्मेदारी उठाएं।

धरना स्थल पर बोलते हुए झुग्गी झोपड़ी संघर्ष समिति के संयोजक ने कहा,
*”हम सरकार से कोई भीख नहीं मांग रहे हैं, हम अपने अधिकार की बात कर रहे हैं। जब इस ज़मीन पर रहने वाले हजारों परिवारों को हटाया जा रहा है, तो उन्हें रहने के लिए एक वैकल्पिक स्थान देना भी सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।”*

प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि उन्हें जबरन हटाया गया और पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की गई, तो वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में वोट का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने कहा कि जिस सरकार को वोट देकर वे सत्ता में लाते हैं, वही सरकार अगर उनके जीवन को अस्थिर करती है, तो वोट का अधिकार भी बेकार हो जाता है।

एक महिला प्रदर्शनकारी ने रोते हुए कहा,
*”हम यहां पचास साल से रह रहे हैं। हमने अपने बच्चों को यहीं बड़ा किया। अब हम कहां जाएंगे? किराया देने की हैसियत नहीं है, और कोई ज़मीन सरकार दे नहीं रही है। क्या गरीब होना गुनाह है?”*

प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने भी बड़ी संख्या में अपनी भागीदारी दर्ज कराई। उन्होंने तख्तियां लेकर सरकार और रेलवे प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। कुछ तख्तियों पर लिखा था — “पहले घर दो, फिर हटाओ”, “गरीबों को मत उजाड़ो”, और “पुनर्वास हमारा हक है”।

प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन इसके संदेश ने प्रशासन तक साफ-साफ अपनी बात पहुँचा दी। स्थानीय प्रशासन के कुछ अधिकारियों ने आकर प्रदर्शनकारियों से बात करने की कोशिश की, परंतु कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया।

धरना समाप्त होते-होते संघर्ष समिति ने यह ऐलान किया कि यदि उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो वे चरणबद्ध आंदोलन शुरू करेंगे। अगला कदम रेलवे कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन और अनशन का होगा। इसके साथ ही वे मुख्यमंत्री और रेलवे मंत्री को ज्ञापन भी भेजेंगे जिसमें पुनर्वास की मांग दोहराई जाएगी।

**निष्कर्षतः**, भागलपुर के झुग्गीवासी इस समय एक बड़े संकट से गुजर रहे हैं। उनके सामने आशियाना बचाने की चुनौती है। इस संघर्ष में वे सरकार और प्रशासन से न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार इन गरीब और बेसहारा परिवारों की पुकार सुनती है या नहीं। यह मामला न केवल प्रशासनिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानवीय दृष्टि से भी तत्काल समाधान की मांग करता है।

 

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By admin

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