भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से शुरू होकर देवघर तक जाने वाली ऐतिहासिक और आस्था से जुड़ी कांवर यात्रा का श्रावणी मेला अब कुछ ही दिन दूर है। हर साल सावन महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु कांवर उठाकर बाबा बैद्यनाथ धाम के दर्शन के लिए निकलते हैं। लेकिन इस बार भी तैयारियों को लेकर प्रशासन की लापरवाही एक बार फिर उजागर हो गई है।
दरअसल, नमामि गंगे घाट से लेकर कांवरिया पथ तक जिस रास्ते से श्रद्धालुओं का गुजरना होता है, वहां नाले का गंदा और बदबूदार पानी बह रहा है। यह स्थिति तब है जब सरकार इस मेले को लेकर करोड़ों रुपये खर्च करती है और हर बार दावा करती है कि सारी व्यवस्थाएं समय पर पूरी कर ली जाएंगी। लेकिन हकीकत यह है कि कांवरियों के लिए बनाए गए मुख्य मार्ग पर नाले का पानी बह रहा है, जिससे न सिर्फ श्रद्धालुओं को परेशानी होगी बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बढ़ सकता है।
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस मार्ग की हालत पिछले कई वर्षों से खराब है। लेकिन अब तक किसी प्रकार की ठोस पहल नहीं की गई है। इस बार की स्थिति और भी चिंताजनक है क्योंकि जिस जगह यह गंदा पानी बह रहा है, वहां नाले का निर्माण अधूरा है। नगर परिषद और जिला प्रशासन की ओर से इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
नगर परिषद की अध्यक्ष से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “नाले के निर्माण के लिए कोई फंडिंग ही नहीं मिली है। जब पैसा ही नहीं आया तो निर्माण कैसे संभव है?” ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि फिर हर साल करोड़ों की लागत से आयोजित होने वाले इस मेले में आखिर पैसे खर्च कहां होते हैं?
जिला प्रशासन की ओर से भी इस बार केवल दावे किए जा रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि “सभी तैयारियां समय पर पूरी कर ली जाएंगी और कांवरियों को किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी जाएगी।” लेकिन जब ज़मीनी हकीकत देखी जाती है तो तस्वीर कुछ और ही बयां करती है।
कांवरिया मार्ग पर बहते इस गंदे पानी से श्रद्धालुओं को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यह मार्ग कांवर यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यहीं से श्रद्धालु जल लेकर बाबा धाम के लिए प्रस्थान करते हैं। यदि रास्ते पर गंदगी और बदबू होगी, तो आस्था के इस पवित्र सफर में बाधा आना तय है।
स्थानीय दुकानदारों और निवासियों ने भी इस स्थिति पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि जब श्रावणी मेला पूरे देश की आस्था का केंद्र बनता है, तो ऐसे में इस तरह की लापरवाहियां बिहार की छवि को भी नुकसान पहुंचाती हैं।
अब देखना यह होगा कि प्रशासन और नगर परिषद इस गंभीर समस्या का समाधान कितनी जल्दी निकालते हैं। या फिर हर बार की तरह इस बार भी केवल खानापूरी करके जिम्मेदार लोग अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लेंगे और श्रद्धालुओं को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
श्रावणी मेला महज एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का प्रतीक भी है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार और प्रशासन इसे गंभीरता से लें और श्रद्धालुओं को स्वच्छ, सुरक्षित और सुगम यात्रा का अनुभव दें।
अपना बिहार झारखंड पर और भी खबरें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें