भागलपुर में दिन में देखने वाला जंगली छुघड़ उल्लू दिखा है। यह उल्लू देश के कम ही राज्यों में मिलता है। तिनपुलिया रिक्शाडीह के समीप दो उल्लू दिखे हैं। अमूमन यहां खलियान व चित्तीदार उल्लू ही दिखते हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के गंगा प्रहरी स्पेयरहेड दीपक कुमार ने बताया कि यह पक्षी दुर्लभ है, जो दिन में देखता है। भागलपुर में इसकी संख्या कम है। यह छुघड़ उल्लू बिहार, बंगाल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में ही मिलता है। यह दोपहर में एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक सीधी रेखा में तेज उड़ान भरता है। अक्सर घने बगीचों व घने पेड़ों के बीच छुप कर बैठता है।
इको सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है यह पक्षी
बॉम्बे नेचर हिस्ट्री सोसायटी के सदस्य नवीन कुमार ने बताया कि यह पक्षी जंगली क्षेत्र या पुराने मकान में घोंसला बनाकर रहना पसंद करता है। जब भी उन्हें किसी खतरे का आभास होता है तो शांत होकर पेड़ के तने से चिपक जाता है। इसका रंग पेड़ के तने जैसा होने के कारण शिकारी के लिए ढूंढ़ना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि यह उल्लू इको सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो किसानों की फसलों को बर्बाद होने से बचाता है। इसका मुख्य भोजन कीट, मेढ़क, छिपकली व चूहे होते हैं। अभी तक इस पक्षी की देश में गणना नहीं हुई है।
अंधविश्वास के कारण खतरे में है छुघड़
जंगली आउलेट या छुघड़ उल्लू अंधविश्वास के कारण खतरे में है। दीपक ने बताया कि कई जगहों पर काला जादू व अन्य कुरीतियों के चलते लोग इनका अवैध शिकार करते हैं। इस कारण इसकी संख्या कम होती जा रही है। इस पक्षी का शिकार करना प्रतिबंधित है। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत अनुसूचित यह पक्षी है। इस पक्षी का शिकार करना दंडनीय अपराध है। उन्होंने बताया कि इस छोटे से उल्लू का गोल सिर होता है और बारीक-बारीक रेखाएं होती हैं। छंद आवरण में यह माहिर होता है व पेड़ों के तने में यह इस तरह घुल-मिल जाता है कि इसे देख पाना आसान नहीं होता। इसके पंख का रंग भूरा व निचला भाग हल्का रंग का होता है। आंख पीले रंग की है।
जानें उल्लू की खासियत
उल्लू बुद्धिमान पक्षी होता है, यह इंसान के मुकाबले 10 गुना धीमी आवाज सुन सकता है
– उल्लू अपने सिर को दोनों तरफ 135 डिग्री तक घुमा सकता है
– दुनिया का सबसे छोटा उल्लू 5-6 इंच और सबसे बड़ा 32 इंच का है
– उल्लू अंटार्टिका के अलावा सब जगह पाए जाते हैं
– उल्लू के पंख चौड़े और शरीर हल्का होता है, इस कारण उड़ते वक्त यह ज्यादा आवाज नहीं करते
– उल्लू झुंड में नहीं रहते, ये अकेले रहना पसंद करते हैं