बिहार में बाल संरक्षण के मामले में अधिकारी लापरवाह हैं। आलम ये है कि राज्य के 11 जिलों में त्रैमासिक निरीक्षण नहीं किया गया है। सात जिलों में अब तक बाल संरक्षण समिति नहीं बन पाई है। लिहाजा निदेशक ने पत्र जारी किया है।

भागलपुर: बाल संरक्षण पर भी प्रशासनिक अधिकारी लापरवाह हैं। राज्य के 11 जिलों में इन अधिकारियों ने संस्थानों का निरीक्षण नहीं किया है। इन्हें हर तीन माह पर बाल संरक्षण इकाइयों का निरीक्षण करने के लिए निर्देशित किया जा चुका है। निरीक्षण के बाद इन्हें अपना प्रतिवेदन संबंधित पोर्टल पर अपलोड करना है। अधिकारियों के इस आचरण पर समाज कल्याण विभाग के निदेशक ने गंभीर चिंता जताई है। 12 अगस्त को समीक्षा बैठक के बाद अधिकारियों को निर्देशित किया है कि हर हाल में इस कार्य को पूरा कर राज्य मुख्यालय को रिपोर्ट उपलब्ध कराएं।

निदेशक के कड़े रुख के बाद जिलाधिकारियों ने भी बाल गृहों की खोज-खबर लेनी शुरू कर दी है। अररिया, भोजपुर, गोपालगंज, जमुई, कटिहार, खगडिय़ा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, समस्तीपुर और सारण में जिला निरीक्षण समिति द्वारा नियमानुसार बाल गृह का निरीक्षण करना समिति के सदस्यों द्वारा अनिवार्य है। अधिकारियों को पूर्व में यह निर्देश दिया गया था कि निरीक्षण के बाद वे अपनी रिपोर्ट संबंधित जिले के जिलाधिकारी को उपलब्ध कराएंगे। ऐसा नहीं करने पर कार्रवाई की जाएगी। बावजूद, समीक्षा में यह भी पाया गया कि बेगूसराय, खगडिय़ा, मधुबनी और पूर्वी चंपारण में प्रखंड स्तरीय बाल संरक्षण समिति का गठन आंशिक रूप से किया गया। बांका, भोजपुर, दरभंगा, गया, गोपालगंज, कैमूर, किशनगंज, जहानाबाद, मधेपुरा, पश्चिम चंपारण, पटना, सहरसा, सारण व शेखपुरा को छोड़कर शेष जिलों में ग्राम पंचायत स्तरीय बाल संरक्षण समिति का गठन पूर्ण रूपेण नहीं किया गया है। इस कारण परेशानी हो रही है।

राज्य के 11 जिलों में अतिरिक्त अस्थायी बाल मित्र न्यायालय का निर्माण होना है। भागलपुर, पटना, कटिहार और पूर्णिया में न्यायालय भवन का उद्घाटन नहीं हो पाया है। उधर, पूर्वी चंपारण, गया एवं रोहतास में अबतक जगह ही उपलब्ध नहीं हो सकी है। मुजफ्फरपुर और पश्चिम चंपारण में न्यायालय निर्माण का कार्य प्रगति पर है। सहायक निदेशक, बाल संरक्षण इकाई को कहा गया है कि वे संबंधित एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर न्यायालय निर्माण का कार्य जल्द से जल्द पूरा करवाएं।

समाज कल्याण विभाग के निदेशक द्वारा पत्र जारी होने के बाद विभागीय अधिकारियों की भागमभाग बढ़ गई है। पाक्सो एक्ट के मामले में भी अधिकारी आंकड़ों को संबंधित पोर्टल पर अपलोड करने में जुट गए हैं। दूसरी तरफ, प्रखंड स्तर पर कैंप लगाकार मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना की राशि के लंबित मामलों का भी निपटारा तेजी के साथ शुरू हो गया है।

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