छोटे से गांव बुढाना (Budhana) से मुंबई तक का सफ़र नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी (Nawazuddin Siddiqui) के लिए आसान नहीं था. जब नवाज़ मुंबई आए तो चॉल में कई लोगों के साथ रहे, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और उनकी हिम्मत का परिणाम ये हुआ कि छोटे से गांव से आने वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी (Nawazuddin Siddiqui) आज एक नाम बन चुके हैं, जिन्हें किसी पहचान की ज़रूरत नहीं है. और हम सबके फ़ेवरेट भी बन चुके हैं. चॉल से अपना सफ़र शुरू करने वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने आज मुंबई में अपने सपनों का महल बना लिया है. इस महल का नाम नवाज़ ने अपने पिता के नाम पर ‘नवाब’ रखा है.

नवाज़ुद्दीन के सपनों का ये घर उनके गांव वाले घर की बनावट जैसा ही बनाया गया है और इसे बनने में 3 साल लग गए. नवाज़ुद्दीन ने अपने इस सपने का नाम बहुत ही दिल से अपने पिता के नाम पर रखा है जैसे किंग ख़ान का बंगला उनके लिए मन्नत दैसा था तो उन्होंने उसका नाम ‘मन्नत’ रख दिया वैसे ही नवाज़ ने अपने पिता की याद में बंगले का नाम ‘नवाब’ रख दिया.

मेरा काम मुझे ज़िंदा रखता है. मैं इसके लिए बना हूं. इसलिए मुझे लगता है कि मैं एक ऐसा इंसान हूं जो वास्तविक जीवन का सामना नहीं कर सकता. जब मैं शूटिंग कर रहा होता हूं तो मुझे लगने लगता है कि ये दुनिया असली है. असल ज़िंदगी में मैं कायर हूं. जब मैं अपने किरदार में होता हूं तो कम से कम उसके ज़रिए सच तो बोल पाता हूं. वास्तविक जीवन में, मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि बहुत सी चीज़ें हो सकती हैं।

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