पटना जिले के मसौढ़ी प्रखंड में स्थित कई सरकारी विद्यालयों में मध्यान भोजन योजना (एमडीएम) के तहत बच्चों को पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने का उद्देश्य आज भी अधूरा नजर आता है। सरकार ने इस योजना के अंतर्गत सप्ताह के हर शुक्रवार को बच्चों को उबला हुआ अंडा उपलब्ध कराने का स्पष्ट निर्देश दे रखा है। इसका उद्देश्य बच्चों को पोषण देना और स्कूलों में उपस्थिति को बढ़ाना है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है। सेक्सरिया मध्य विद्यालय जैसे कई स्कूल इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं।
इस विद्यालय में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं ने बताया कि उन्हें मध्यान भोजन के दौरान उबला हुआ अंडा नहीं दिया जाता। इसके बजाय, स्कूल की छुट्टी के बाद उन्हें कच्चा अंडा थमा दिया जाता है। छात्र-छात्राओं के अनुसार, उन्हें स्कूल की छुट्टी के बाद लाइन में खड़ा कर एक-एक करके कच्चा अंडा दिया जाता है, मानो यह कोई प्रसाद हो। बच्चों का कहना है कि कच्चा अंडा ले जाते समय उनके हाथ से गिर जाने का डर बना रहता है, जिससे वह तनाव और असुविधा महसूस करते हैं। यह स्थिति न केवल उनकी सुरक्षा को प्रभावित करती है, बल्कि मध्यान भोजन योजना की मूल भावना और उद्देश्य को भी कमजोर करती है।
एक छात्र ने बताया, “हमें खाने के वक्त उबला अंडा नहीं मिलता, छुट्टी के बाद कच्चा अंडा दिया जाता है। ये अंडा ले जाते समय गिरने का डर रहता है।” यह बयान स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि बच्चों को पोषणयुक्त भोजन देने की सरकारी योजना केवल कागजों में रह गई है, जबकि विद्यालयों में उसका अनुपालन ठीक तरह से नहीं हो रहा है।
शिक्षा विभाग ने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और पोषण देने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। इसके तहत समय-समय पर निरीक्षण और दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं। फिर भी, मसौढ़ी के कुछ विद्यालय अपनी मनमानी पर उतरे हुए हैं। सेक्सरिया मध्य विद्यालय का यह मामला बताता है कि कैसे कुछ विद्यालय प्रशासन सरकारी मापदंडों की अनदेखी कर रहे हैं। यह शिक्षा विभाग की निगरानी व्यवस्था और प्रशासनिक जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है।
इस मुद्दे पर जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी राजेंद्र ठाकुर से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, “कच्चा अंडा देना नियमों के खिलाफ है। सभी स्कूलों को उबला अंडा देने का निर्देश है। इसका उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।” उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी प्रधानाध्यापकों को इस संबंध में निर्देश जारी किए गए हैं और जो भी विद्यालय नियमों का पालन नहीं करेगा, उस पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला केवल एक स्कूल तक सीमित नहीं है। अगर इसकी गहराई से जांच की जाए, तो संभव है कि मसौढ़ी के कई अन्य विद्यालय भी इस तरह की लापरवाही कर रहे हों। यह न केवल बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के साथ खिलवाड़ है, बल्कि सरकारी धन और संसाधनों की बर्बादी भी है।
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जब उनका ईमानदारी से पालन हो। इसके लिए ज़रूरी है कि शिक्षा विभाग अपनी निगरानी व्यवस्था को और सख्त करे और स्कूलों को उत्तरदायी बनाया जाए। साथ ही, बच्चों और अभिभावकों को भी जागरूक किया जाए ताकि वे अपने अधिकारों को समझें और ऐसे मामलों की जानकारी उचित माध्यमों से संबंधित अधिकारियों को दे सकें।
निष्कर्षतः, मसौढ़ी के सरकारी स्कूलों में मध्यान भोजन योजना का सही क्रियान्वयन तभी संभव होगा जब नियमों का कड़ाई से पालन हो और लापरवाह स्कूल प्रशासन पर त्वरित कार्रवाई की जाए। सेक्सरिया मध्य विद्यालय का उदाहरण यह दर्शाता है कि कैसे योजनाओं की अनदेखी बच्चों के हितों को नुकसान पहुंचा रही है।