ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया के कुछ प्रमुख ग्लेशियरों का अस्तित्‍व समाप्‍त होने की आशंका जताई जाने लगी है. संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक एजेंसी यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण साल 2050 तक ये ग्लेशियर समाप्‍त हो जाएंगे. इनमें इटली का डोलोमाइट्स, संयुक्त राज्य अमेरिका का योसेमाइट और येलोस्टोन पार्क और तंजानिया का माउंट किलिमंजारो शामिल हैं. यूनेस्को अपने 50 विश्व धरोहर स्थलों में से लगभग 18,600 ग्लेशियरों की निगरानी करती है. यूनेस्‍को ने कहा कि उनमें से एक तिहाई का अस्तित्‍व 2050 तक समाप्‍त हो जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार, बाकी ग्लेशियर को बचाया जा सकता है, यदि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फ़ारेनहाइट) से नीचे रखा जाए. यूनेस्को के विश्व धरोहर ग्लेशियरों में से लगभग 50% साल 2100 तक लगभग पूरी तरह से समाप्‍त हो सकते हैं.

यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व धरोहर ग्लेशियर दुनिया के लगभग 10 प्रतिशत ग्लेशियर क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इनमें दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध ग्लेशियर शामिल हैं, जिनका नुकसान अत्यधिक दिखाई देता है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक,  रिपोर्ट के प्रमुख लेखक टेल्स कार्वाल्हो ने बताया कि विश्व धरोहर ग्लेशियर हर साल औसतन लगभग 58 बिलियन टन बर्फ खो देते हैं. यह फ्रांस और स्पेन में एक साथ उपयोग किए जाने वाले पानी की कुल वार्षिक मात्रा के बराबर है. वैश्विक रूप से देखे गए समुद्र के स्तर वृद्धि में लगभग 5% में योगदान करते हैं. कार्वाल्हो ने कहा कि दुनियाभर में प्रमुख ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षात्मक उपाय कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी करना होगा.

यूनेस्को ने सलाह दी है कि भविष्य में ये ग्लेशियर और सिकुड़ सकती हैं. इससे आपदा जोखिम पैदा हो सकती है, इसलिए स्थानीय अधिकारियों को निगरानी और अनुसंधान में सुधार करके और आपदा जोखिम कम करने के उपायों को लागू करके ग्लेशियरों को नीति का केंद्र बनाना चाहिए. कार्वाल्हो ने कहा कि जैसे ही ग्लेशियर झीलें भरती हैं, वे फट सकती हैं और विनाशकारी बाढ़ का कारण बन सकती हैं.

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