कोसी नदी, जिसे ‘बिहार का शोक’ भी कहा जाता है, एक बार फिर अपने विकराल रूप से लोगों को भयभीत कर रही है। लगातार हो रहे जलस्तर के उतार-चढ़ाव ने कोसी तटबंध के अंदर बसे गांवों में तबाही मचानी शुरू कर दी है। सबसे भयावह स्थिति भागलपुर जिले के सदर प्रखंड के बलबा पंचायत के लालगंज गांव में देखने को मिल रही है, जहाँ नदी के कटाव ने ग्रामीणों का सब कुछ छीन लिया है।
आज सुबह आठ बजे कोसी बराज से 1,82,640 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज किया गया। पानी के इस दबाव के कारण नदी का रुख अचानक बदल गया और किनारों पर कटाव तेज हो गया। ग्रामीण बताते हैं कि इस उतार-चढ़ाव के कारण गांव के कई घर नदी की धारा में समा चुके हैं। लोग अपने परिवार और बच्चों को लेकर सुरक्षित स्थान की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
कटाव की चपेट में आए लालगंज गांव के दर्जनों परिवारों ने अपना घर-बार उजाड़ दिया है। किसी ने खपरैल का मकान छोड़ा तो किसी का पक्का घर भी नदी में समा गया। भय और असुरक्षा का आलम यह है कि लोग अपनी छत तक छोड़कर ऊँचे स्थानों पर शरण लेने लगे हैं। बच्चों और महिलाओं के साथ बुजुर्ग लोग खुले आसमान के नीचे जीवन बिताने को विवश हो गए हैं। ग्रामीणों की आंखों में भय और बेबसी साफ झलक रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि लालगंज गांव अब लगभग उजड़ चुका है। कभी जहां घरों की रौनक थी, वहां अब सिर्फ पानी की धारा और गिरे हुए घरों के अवशेष दिखाई दे रहे हैं। कई परिवारों ने बताया कि वे अपनी पुश्तैनी जमीन और खेती छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। जीवनभर की कमाई का आशियाना देखते-देखते नदी की लहरों में समा गया।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस विकराल स्थिति के बावजूद प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई ठोस पहल नहीं की गई है। न तो राहत शिविर लगाए गए हैं और न ही पीड़ित परिवारों को भोजन या रहने की व्यवस्था दी गई है। ग्रामीणों का कहना है कि नेताओं और अधिकारियों ने सिर्फ आश्वासन दिया है, लेकिन हकीकत में कोई मदद अब तक नहीं पहुँची है। इससे लोगों में आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है।
कोसी के कटाव से प्रभावित लोग अब शासन-प्रशासन से राहत और मुआवजे की गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले दिनों में और कई गांव नदी में समा सकते हैं।
कोसी नदी का यह कहर सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि मानव जीवन के अस्तित्व की भी बड़ी चुनौती है। लालगंज जैसे गांवों का उजड़ना केवल भूगोल का परिवर्तन नहीं, बल्कि उन सैकड़ों सपनों का भी बिखरना है जो वर्षों से इन घरों की दीवारों में बसते थे।
