नेपाल में जारी लगातार बारिश का असर अब बिहार के सीमावर्ती इलाकों में दिखने लगा है। कोसी नदी एक बार फिर रौद्र रूप में है। जलस्तर बढ़ने से सहरसा, सुपौल, मधेपुरा और अररिया जिलों के निचले इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है। कई गांवों में पानी घुस चुका है, जिससे ग्रामीण एक बार फिर पलायन को मजबूर हो रहे हैं। कोसी तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लोग अपने घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे हैं।
सहरसा जिले के नवहट्टा, महिषी, बनगांव और सलखुआ प्रखंड के कई गांवों में नदी का पानी खेतों और घरों में घुस गया है। कोसी किनारे बसे लोगों के घर जलमग्न हो चुके हैं। कटाव की रफ्तार इतनी तेज है कि कई घर और बगीचे नदी में समा चुके हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि कटाव के डर से रातभर नींद नहीं आती। हर घंटे नदी का पानी बढ़ रहा है और जमीन दरक रही है। कई परिवार खुले आसमान के नीचे या ऊंचे बांधों पर शरण लिए हुए हैं।
ग्रामीण प्रशासन पर उदासीनता का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि नावों की संख्या बेहद कम है, जिससे लोगों को आने-जाने में दिक्कत हो रही है। राहत शिविरों और सामुदायिक किचन की व्यवस्था सिर्फ कागजों पर दिखाई देती है। ग्रामीणों का आरोप है कि हर साल की तरह इस बार भी प्रशासन सिर्फ सर्वे और बयानबाजी तक सीमित है। “कोसी की बाढ़ अब वार्षिक आपदा नहीं, बल्कि एक अवसर बन गई है — नेता और अफसर साल में एक बार इसी में कमाते हैं,” एक पीड़ित ग्रामीण ने कहा।
सहरसा के स्थानीय जनप्रतिनिधि भी अब प्रशासन की तैयारियों पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि समय रहते कटावरोधी कार्य नहीं किए गए, जिसकी वजह से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। वहीं, प्रशासन का दावा है कि सभी अंचलों में टीमें तैनात हैं और राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है।
इस बीच सहरसा के जिलाधिकारी दीपेश कुमार ने बताया कि सुबह की तुलना में अब कोसी के जलस्तर में थोड़ी कमी दर्ज की गई है। उन्होंने कहा, “यदि नेपाल में रात में बारिश नहीं होती है, तो कल सुबह तक जलस्तर में गिरावट आ सकती है, जो राहत की बात होगी।” उन्होंने यह भी कहा कि जिला प्रशासन पूरी तरह अलर्ट है और आपदा से निपटने के लिए सभी आवश्यक इंतज़ाम किए जा रहे हैं।
फिलहाल, कोसी के तटवर्ती इलाकों में लोगों में भय का माहौल बना हुआ है। गांवों के लोग अपने मवेशी और जरूरी सामानों को लेकर सुरक्षित स्थानों की तलाश में निकल पड़े हैं। नदी के बढ़ते जलस्तर और कटाव ने फिर से यह याद दिला दिया है कि “बिहार में कोसी सिर्फ नदी नहीं, बल्कि हर साल लौट आने वाली त्रासदी है।”
