लोक आस्था के महापर्व *छठ* की शुरुआत बीते शनिवार को *नहाय-खाय* के साथ हो चुकी है। आज पर्व का दूसरा दिन है, जिसे *खरना* कहा जाता है। यह दिन व्रती महिलाओं और पुरुषों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन से 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ होता है।
खरना के दिन व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद पूजा-अर्चना करते हैं। आज सूर्यास्त का समय शाम **5 बजकर 41 मिनट** पर है। इसी के बाद व्रती मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से अरवा चावल और गुड़ से बनी खीर, साथ ही गेहूं के आटे की रोटी या पूरी तैयार करते हैं। यह प्रसाद सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है, फिर व्रती स्वयं ग्रहण करते हैं।
प्रसाद में *केला* का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि केला छठी मैया को अत्यंत प्रिय है। खरना प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती अगले दिन *संध्या अर्घ्य* और उसके अगले दिन *उषा अर्घ्य* तक बिना जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, खरना के दिन की पूजा से न केवल मन की शुद्धि होती है, बल्कि यह परिवार में सुख-समृद्धि और संतान सुख का आशीर्वाद भी देती है।
गुड़, दूध और चावल से बनी खीर को अत्यंत पवित्र माना जाता है, क्योंकि यह सूर्य देव को अर्पित पहला भोग होता है।
खरना के बाद व्रती 27 अक्टूबर की शाम को *संध्या अर्घ्य* देंगे और 28 अक्टूबर की सुबह *उगते सूर्य* को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण करेंगे।
भागलपुर सहित बिहार के सभी जिलों में आज श्रद्धालुओं के घरों में खरना की तैयारियां जोरों पर हैं। घर-घर में मिट्टी के चूल्हे सजे हैं, आम की लकड़ी की खुशबू वातावरण को पवित्र बना रही है और महिलाएं पारंपरिक परिधान में पूजा की तैयारी में जुटी हैं।
छठ पर्व के इस दूसरे दिन को लोक आस्था का सबसे अनुशासित और पवित्र चरण माना जाता है, जो तप, संयम और श्रद्धा का प्रतीक है। खरना के साथ ही पूरे बिहार में छठ की भक्ति का माहौल चरम पर पहुंच गया है।
